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________________ चति, पंचसमिओ तिगुता खेलसिंघाणे ण बिगिचति, इह श्रावकः सामायिककर्ता द्विविधो भवति-ऋद्धिमाननृद्धिकश्च योऽसावनृद्धिकः स चतुर्यु स्थानेषु सामायिक स्वोपक्ष तृतीय: वृत्ति१सामातियं नाम सावजजोगपरिवजणं जिरवजजोगपरिसेवणं च । तं सावरण कहं कायध्वं ? सो दुविहो इहिं के प्रकाशः विभूषित पत्तो अणढि पत्तो य। जो सो अणिढिपत्तो सो चेइयघरे वा साधुसमीचे वा घरे वा पोसहसालाए वा जत्थ वा वीसमति , श्लोकः ८२ योगशास्त्रम् अच्छति वा णिव्वावारो सपत्थ करेति सव्वं (तस्थ-हा०), चउसु ठाणेसु वा (वा-नास्ति हा०) णियमा कायम्वं, तंजहा चेतियघरे । ॥४७८ ॥ साहुमूले पोसहसालाए वा घरे वा आवासं करेंतोत्ति, तत्थ जदि साहुसगासे करेति तत्थ का विही!, जदि पारं (परं-हा०) ॥ ४७८॥ विपरभयं णत्थि जइवि य केणइ समं विवादोणस्थि जदि कस्सति ण धरेति मा तेण अंछवियंछिय कहिजति (कजिहिति-हा०), जदि है धारणग दळूण ण गिण्हति मा पडिभज्जिहि, जति य वावारं ण वावारेति ताहे घरे चेव सामातियं काऊण, मउवाहणातो मोत्तूण सचित्तदव्वविरहितो । वच्चति, पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाए उवउपो जहा साहू भासाए सावज्जं परिहरंतो, एसणाए कटुं । लेटुं वा पडिलेहित्तु पमजित्तु, एवं आदाणणिक्खेवणे. खेलसिंघाणे ण विगिचति, विगिंचिन्तो वा पडिलेहिय पमज्जिय थंडिले, जत्थ चिट्ठति तत्थ गुत्तिणिरोधं करेति, एताए विहीए गंता (गत्ता-हा०) तिविहेण णमिऊण साधुणो पच्छा साधुसक्खियं सामातियं करेति-करेमि भंते । सामाइयं० दुविहं तिविहेणं जाव साहू पज्जुवासामिति काऊणं, मजइ चेतियाई अस्थि तो पढम वंदति, साहणं सगासातो रवहरणं निसेज वा मग्गति, अह घरे तो से ओग्गहितं रयहरणं अत्थि, तस्स असति पोत्तस्स अंतेणं, पच्छा-इरिया-12 हैवहियाए पडिकमइ, पच्छा आलोइत्ता वंदइ आयरियादी जहारायणियाए, पुणोवि गुरुं वंदित्ता पडिलेहेत्ता णिविट्ठो पुच्छइ पढइ वा, एवं चेइएसु वि, असइ साहूचेइयाणं पोसहसालाए सगिहे वा, एवं सामाइयं वा आवस्सय वा करेइ तत्थ, नवरि गमणं नस्थिळ भणइ-जाव णियमं समाणेमि । जो इडिपत्तो सो किर एंतो सव्विड्डीए एइ तो जणस्स अत्था होति, आढिता य साहुणो सप्पुरिसपरिग्गहेणं, जति सो कयसामातितो एति ताए आस-हत्थिमादि णा-हा०] जणेण य अहिगरणं पवट्टति ताहे ण करेति, कयसामातिएण य पाएहिं आगंतव्वं तेण ण करेति, आगतो साहुसमीवे करेति, जदि सो सावतो, ण कोति उठेति, अह अहाभद्दउ त्ति पूया कया होहि त्ति भणति ताहे पुज्वरतियं आसणं कीरति, आयरिया उद्विता अच्छंति, तत्थ उठेतमणुटुंते दोसा भासियव्वा का For Private & Personal use only साधुणो पच्छा साधु www.jainelibrary.org
SR No.600013
Book TitleYogashastram Part_2
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorJambuvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages658
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript, Yoga, & Sermon
File Size12 MB
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