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[1.9-9.25] In the *Jīvaṭṭhāna-Cūliya*, the first *samyaktva* arises due to the following reasons: [317
**17.** *Tiryāṅca* beings who are born in the womb (**gabbhovatantiesu**) produce the first *samyaktva*, not those who are born in a state of unconsciousness (**sammūcchiṃmesu**).
**18.** *Tiryāṅca* beings who are born in the womb (**gabbhovatantiesu**) produce the first *samyaktva* in those who are *pariyāpta* (**pajjattāesu**), not in those who are *aparāpta* (**apajjattāesu**).
**19.** *Tiryāṅca* beings who are born in the womb (**gabbhovatantiesu**) produce the first *samyaktva* in those who are *pariyāpta* (**pajjattāesu**) from the time of *divasapṛthaktva* (**divasapudhattappahuḍi**) onwards, not before that time (**ṇo heṭṭhādo**).
**Note:** *Divasapṛthaktva* here refers to a significant period of time, not just seven or eight days. The word *pṛthaktva* indicates a large number.
**20.** In this way, *tiryāṅca* beings produce the first *samyaktva* in all the islands and oceans (**savadīva-samuddesu**).
**21.** For what reasons do *tiryāṅca* beings with *miśśhādiṭṭhi* (false beliefs) produce the first *samyaktva*?
**22.** *Tiryāṅca* beings with *miśśhādiṭṭhi* produce the first *samyaktva* for three reasons: some due to *jātismaraṇa* (recollection of past lives), some due to hearing the *dharmopadeśa* (religious teachings), and some due to seeing the *jīna-bimba* (image of the Jina).
**23.** Humans with *miśśhādiṭṭhi* (false beliefs) produce the first *samyaktva*.
**24.** In what state do humans with *miśśhādiṭṭhi* (false beliefs) produce the first *samyaktva*?
**25.** Humans with *miśśhādiṭṭhi* (false beliefs) produce the first *samyaktva* in those who are born in the womb (**gabbhovatantiesu**), not in those who are born in a state of unconsciousness (**sammūcchiṃmesu**).
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१,९-९, २५] जीवट्ठाण-चूलियाए पढमसम्मत्तुप्पत्तिकारणपरूपणा [३१७
सण्णीसु उत्पादेंता गब्भोवतंतिएसु उप्पादेंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ १७॥
संज्ञी तिर्यंचोंमें भी प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले तिर्यंच जीव गर्भजोंमें ही उसे उत्पन्न करते हैं, न कि सम्मूर्छन जन्मवालोंमें ॥ १७ ॥
गम्भोवकंतिएसु उप्पादेंतो पज्जत्तएसु उप्पादेंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ १८ ॥
गर्भज तिर्यंचोंमें भी प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले तिर्यंच जीव उसे पर्याप्तकोंमें ही उत्पन्न करते हैं, न कि अपर्याप्तकोंमें ॥ १८ ॥
पज्जत्तएसु उप्पादेंता दिवसपुधत्तप्पहुडि जावमुवरिमुप्पादेंति, णो हेट्ठादो॥१९॥
पर्याप्तक तिर्यंचोंमें भी प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले तिर्यंच जीव दिवसपृथक्त्वसे लेकर ऊपरके कालमें ही उसे उत्पन्न करते हैं, उसके नीचेके कालमें नहीं उत्पन्न करते ॥ १९ ॥
दिवसपृथक्त्वसे यहां बहुत दिवसपृथक्त्वोंको ग्रहण करना चाहिये, न कि सात आठ दिनोंको; क्योंकि, 'पृथक्त्व' शब्द यहां विपुल संख्याका वाचक है ।
एवं जाव सव्वदीव-समुद्देसु ॥२०॥ इस प्रकारसे सब द्वीप-समुद्रोंमें तिर्यंच जीव प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥ २०॥ तिरिक्खा मिच्छाइट्ठी कदिहि कारणेहि पढमसम्मत्तं उप्पादेंति ? ॥ २१ ॥ तिर्यंच मिथ्यादृष्टि जीव कितने कारणोंसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ? ॥ २१ ॥
तीहि कारणेहि पढमसम्मत्तमुप्पादेंति- केई जाइस्सरा, केई सोऊण, केई जिणबिंब द₹ण ॥ २२ ॥
पूर्वोक्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव तीन कारणोंसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं- कितने ही तिर्यंच जीव जातिस्मरणसे, कितने ही धर्मोपदेशको सुनकर और कितने ही जिनप्रतिमाका दर्शन करके उसे उत्पन्न करते हैं ॥ २२ ॥
मणुस्सा मिच्छादिट्ठी पढमसम्मत्तमुप्पादेति ॥ २३ ॥ मनुष्य मिथ्यादृष्टि प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥ २३ ॥ उप्पादेंता कम्हि उप्पादेंति ? ॥ २४ ॥ प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले मिथ्यादृष्टि मनुष्य किस अवस्थामें उसे उत्पन्न करते
गब्भोवतंतिएसु पढमसम्मत्तमुप्पादेंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ २५॥
मिथ्यादृष्टि मनुष्य गर्भज मनुष्योंमें प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, सम्मूर्च्छनोंमें उसे नहीं उत्पन्न करते ॥ २५॥
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