Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
[308] Jivatthanam in Chakkhandagama
18. The minimum duration of the bondage of the three passions - anger, pride, and deceit - is two months, one month, and one fortnight respectively.
19. The minimum duration of the obstruction caused by these three passions is just an antarmuhurta (less than 48 minutes).
20. The minimum karmic status resulting from the obstruction caused by these three passions is also of the lowest degree.
21. The minimum duration of the bondage of the male sex-energy (purisaveda) is eight years.
22. The minimum duration of the obstruction caused by the male sex-energy is just an antarmuhurta.
23. The minimum karmic status resulting from the obstruction caused by the male sex-energy is also of the lowest degree.
24. The minimum duration of the bondage of the female sex-energy, neuter sex-energy, laughter, attachment, detachment, sorrow, fear, disgust, animal-gati, human-gati, one-sensed, two-sensed, three-sensed, four-sensed, and five-sensed beings, the four types of bodies (audarika, taijasa, karmana), the six types of physical constitutions, the six types of physical limbs, the four types of sense-objects (color, smell, taste, touch), the two types of gati-prayogyanupurvi (animal and human), the four types of agurulaghu, the four types of upaghata and paraghata, the four types of ucchvasa, atapa, udyota, the two types of vihayogati (auspicious and inauspicious), the two types of trasa and sthavara, the two types of badara and sukshma, the two types of paryapta and aparyapta, the two types of pratyeka and samanya sarira, the two types of sthira and asthira, the two types of shubha and ashubha, the two types of subhaga and durbbhaga, the two types of sushvara and duhshvara, the two types of adeyya and anadeyya, the two types of ajasakkitti, and the two types of nimna and nicegotra is less than 7/8th of a sagaropama, and less than 1/asankhyatabhaga of a palyadhopama.
________________
३०८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-७, १८ कोधसंजलण-माणसंजलण-मायसंजलणाणं जहण्णओ हिदिबंधो वे मासा मासं पक्वं ॥१८॥
क्रोधसंचलन, मानसंज्वलन और मायासंज्वलन इन तीनोंका जघन्य स्थितिबन्ध क्रमशः दो मास, एक मास और एक पक्ष मात्र होता है ॥ १८ ॥
अंतोमुहुत्तमाबाधा ॥ १९ ॥ उक्त तीनों संज्वलन कषायोंका जघन्य अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ १९ ॥ आबाधूणिया कम्मद्विदी कम्मणिसेओ ॥ २० ॥
उक्त तीनों संचलन कषायोंकी आबाधाकालसे हीन जघन्य कर्मस्थिति प्रमाण उनका कर्मनिषेक होता है ॥ २० ॥
पुरिसवेदस्स जहण्णओ हिदिबंधो अट्ठवस्साणि ॥ २१ ॥ पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध आठ वर्ष मात्र होता है ॥ २१ ॥ अंतोमुहुत्तमाबाधा ॥२२॥ पुरुषवेदका आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ।। २२ ॥ आबाधूणिया कम्मद्विदी कम्मणिसेओ ॥ २३ ॥ पुरुषवेदकी आबाधाकालसे हीन जघन्य कर्मस्थिति प्रमाण उसका कर्मनिषेक होता है ।
इत्थिवेद-णउंसयवेद-हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछा-तिरिक्खगइ-मणुसगइ-एइंदियबीइंदिय-तीइंदिय-चउरिदिय-पंचिंदियजादि-ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीरं छहं संठाणाणं ओरालियसरीरअंगोवंगं छण्हं संघडणाणं वण्ण-गंध-रस-फासं तिरिक्खगइ-मगुसगइपाओग्गाणुपुची अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघाद-उस्सास-आदाउज्जोव-पसत्थविहायगदि-अप्पसत्थविहायगदि-तस-थावर-बादर-सुहुम-पञ्जतापजत-पतेय-साहारणसरीर-थिराथिर-सुभासुभ-सुभग-दुभगसुस्तर-दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-अजसकित्ति-णिमिण-णीचागोदाणं जहण्णगो द्विदिवंधो सागरोवमस्स वे सत्तभागा पलिदोषमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणया ॥ २४ ॥
स्त्रीवेद, नपुंसकोद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यग्गति, मनुष्यगति, एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कामणशरीर, छहों संस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, छहों संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरु अलघु, उपधात, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, अयशःकीर्ति, निर्माण और नीच गोत्र; इन प्रकृतियोंका जवन्य स्थितिबन्ध पत्योपमके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org