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________________ महान् पुरुषों के ध्यान से मानसिक लाभ और दो-एक और भाषाएँ बोल लेते थे; किन्तु सभी टूटी- देना स्वीकार किया। खुद्दक पाठ के ११ ग्रंथ छपे भी, फूटी। अपने वाक्यों में दो एक अंग्रेजी वाक्यों के प्रयोग किन्तु राहुल जी के बहुधन्धीपन के कारण और हम लोगों वे किया करते थे, जो व्याकरण की दृष्टि से प्रायः अशुद्ध के उस कार्य को अपने सिर न ओढ़ सकने के कारण वह होते और जिन्हें उनके समय के अंग्रेजी से अपरिचित गाड़ी आगे न चल सकी। भिक्षु उत्तम की वह पुण्यमयी अथवा अल्प परिचित व्याख्याताओं की विशेषता थी। इच्छा मन ही मन रही। हिन्दी-हिन्दुस्तानी में वे निधड़क बोलते थे, मानों कोई उन्होंने बर्मा के सार्वजनिक जीवन को प्रायः हर तरह सड़क कूटने वाला ईंजन सड़क कूटता चला जा रहा हो ! से उभारने का प्रयत्न किया था। जनता के प्रिय-भाजन भाषण में हँसाते भी खूब थे और कभी कभी तो होने के हिसाब से तो वे बर्मा के गांधी थे। चलते थे तो विरोधी का ऐसा मजाक बनाते मानों कोई चार्ली चेपलन स्त्रियाँ अपने सिर से बाल उनके पैरों के नीचे बिखेर देती ही रंगमंच पर उतर आया हो ! थीं; बड़े ही भादरणीय, बड़े ही स्पष्ट वक्ता । ___ उन्हें अपनी माता से बहुत सा रुपया मिला था। किन्तु, हायरी छलना राजनीति ! उनके अन्तिम दिन उनकी इच्छा थी कि वह सारा रुपया नागरी अक्षरों में बड़े दुःखमय बीते । बर्मा के दो राजनैतिक दलों में से एक पालि त्रिपिटक के मुद्रण पर खर्च हो जाय । कितने बड़े का साथ उन्होंने जन्म भर दिया। अन्तिम दिनों में उसे खेद की बात है कि भारत को अपने बुद्ध पर इतना गर्व छोड़कर दूसरे दल में शामिल हो गये। जिसे छोड़ दिया है, और उचित गर्व है; किन्तु बुद्ध के जो मूल उपदेश था वह दल जीत गया, जिसमें शामिल हुए वह दल हार पालि भाषा में सुरक्षित हैं, उन्हें यदि आप आज भी गया । भिक्षु उत्तम कहीं के न रहे। पढ़ना चाहें तो वे आपको देवनागरी अक्षरों में पढ़ने को उनके अन्तिम दिन विक्षिप्त शब्द के यथार्थ अर्थ में न मिलेंगे ? आप उन्हें रोमन अक्षरों में पढ़ सकते हैं, एक विक्षिप्त का जीवन था। अपनी चप्पल अपनी बगल सिंहल अक्षरों में पढ़ सकते हैं, बर्मी अक्षरों में पढ़ सकते में लिए लोगों ने उन्हें बर्मा की सड़कों पर फटेहाल घमते हैं, स्यामी अक्षरों में पढ़ सकते हैं, किन्तु बुद्ध की अपनी देखा है ? भूमि के आज देवनागरी अक्षरों में नहीं पढ़ सकते । भिक्ष किन्तु, उनका जब शरीरान्त हुआ बर्मी जाति ने उनके उत्तम की प्रेरणा से राहुलजी ने नागरी अक्षरों में त्रिपिटक प्रति वही गौरव प्रदर्शित किया, जिसके वे अधिकारी थे। मुद्रण के कार्य को अपने हाथ में लिया। भिक्षु जगदीश बर्मा के स्वातन्त्र्य-आन्दोलन के साथ उनकी याद काश्यप और इन पंक्तियों के लेखक ने भी उसमें सहयोग अमिट है। महान् पुरुषों के ध्यान से मानसिक लाभ प्रो० लालजीराम शुक्ल अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक डेल कारनेगी महाशय राज्य के काम में कोई बड़ी कठिनाई का अनुभव होत अपनी 'पबलिक सीकिंग' नामक पुस्तक में लिखते हैं था, जब उन्हें किसी ऐसे निर्णय को करना पड़ता था कि जब सभा में बोलने में घबराहट का अनुभव हो जिसमें अनेक प्रकार की जटिल बातों पर विचार करने तो किसी महान् पुरुष का ध्यान करो तो तुम अपने की आवश्यकता होती थी तो वह ब्रिाहम लिंकन का आप में वह शक्ति आते हुये देखोगे जिससे अपने श्रोताओं ध्यान करता था। वह सोचता था कि यदि मेरी स्थिति को वश में कर लोगे। जब कभी प्रेसिडेन्ट रुजवेल्ट को में अब्राहम लिंकन होता तो क्या करता? फिर जो कुछ
SR No.545672
Book TitleDharmdoot 1950 Varsh 15 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmrakshit Bhikshu Tripitakacharya
PublisherDharmalok Mahabodhi Sabha
Publication Year1950
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Dharmdoot, & India
File Size10 MB
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