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महान् पुरुषों के ध्यान से मानसिक लाभ दर्द हो रहा है । आप मानते हैं कि अमुक व्यक्ति भापके का भादर उसके भौतिक शरीर की सेवा करने उससे पेट के दर्द का हरण कर सकता है। आप उसका ध्यान प्रणाम करने में नहीं है उसके विचारों पर उसके शान्त
और सोचिये कि वह आपके ऊपर हाथ फेर कर भाव के बारे में बार-बार चिन्तन करने में है। लौकिक उस पीड़ा को हटा रहा है । आप देखेंगे कि कुछ काल के व्यक्तियों से सबसे अधिक लाभ उनके शरीर के समीप बाद आपकी पीड़ा जाती रही। इमील कुये महाशय अपने रहने से होता है। महान् पुरुषों से सबसे अधिक लाभ रोगियों को यही आदेश देते थे, कि वे प्रति दिन इस उनके शरीर से दूर रहने से ही होता है। महान् पुरुष विचार का नियमित रूप से अभ्यास करें कि हम हर सत्य के प्रतीक हैं। सत्य व्यापक तख है। महान् पुरुष प्रकार हर दिन अच्छे हो रहे हैं। वे यह भी कह देते थे की कल्पना हमें सत्य दर्शन का साधन बन जाती है। कि इन शब्दों को कहते समय रोगी सोचे कि इमील कूये कल्पना की प्रबलता से मन और बुद्धि के परे का तत्व उनके पास खड़े हैं । इस प्रकार के चिन्तन से रोगी को प्रत्यक्ष हो जाता है। जो लाभ सत्य के विषय में वर्षों स्वास्थ्य लाभ करने में अपार लाभ होता था।
चिन्तन करने से, उस पर तर्क-वितर्क करने से नहीं होता __ जब मनुष्य अपने पुरुषार्थ में विश्वास खो देता है तो वह क्षण भर के सच्चे ध्यान से हो जाता है। संसार के किसी महान् पुरुष का ध्यान फिर से उसमें विश्वास उप्तन्न महान् पुरुष मूर्तिमान सत्य हैं। उनका ध्यान करना उनके कर देता है। अंग्रेजी में कहावत है, 'जिस प्रकार रोग साथ आत्मसात करना है। इस प्रकार की मानसिक संक्रामक है उसी प्रकार स्वास्थ्य भी संक्रामक है। रोगी सम्पत्ति से मनुष्य वही मानसिक बल, शौर्य और मनुष्य के सम्पर्क में आने से साधारण व्यक्ति भी अपने प्रसाद अपने आप में आते हुए पायेगा जो उसके व्यक्तित्व आप में रोग की कल्पना, करने लगता है और स्वस्थ में वर्तमान है। भौतिक दृष्टि से महान् पुरुष उसी प्रकार मनुष्य के सम्पर्क में आने से साधारण मनुष्य अपने नश्वर है जिस प्रकार अन्य पुरुष हैं। पर विचार की दृष्टि आप में शक्ति के उदय की अनुभूति करने लगता है। वह से वे अमर हैं। जो व्यक्ति हर परिस्थितियों में अपने स्वास्थ्य वृद्धि के साधनों को अपनाने लगता है। यह सम्पर्क धैर्य को बनाये रखता है जो हर प्रकार के कष्ट में प्रसन्नदो प्रकार का होता है। एक भौतिक और दूसरा मानसिक बदन रहता है वह महान शक्ति का केन्द्र है। ऐसे व्यक्ति अधिक प्रभावकारी सम्पर्क मानसिक सम्पर्क है। कोई का ध्यानमात्र शक्ति और प्रसन्नता का उत्पादक होता है। मनुष्य महात्मा के समीप भौतिकदृष्टि से रहकर भी उससे भगवान बुद्ध के ध्यान से कितने ही साधकों को समाधि मानसिक दृष्टि से कोसों दूर रह सकता है और कोई उससे लाभ होती है। भौतिकदृष्टि से कोसों दूर रहकर भी मानसिक दृष्टि से महान पुरुष का ध्यान नई स्फूर्ति, नई प्रेरणा और अत्यन्त समीप रह सकता है। सरचा सम्पर्क हृदय की नये भले संकल्पों का कारण होता है। इसका एक कारण चाह है। जिस व्यक्ति को जिसकी चाह है वह उसी के यह है इन महान् पुरुषों के सभी मन्तव्य अभी तक पूरे पास है।
नहीं हुये। वे उनके बाद आने वाले लोगों के द्वारा पूरे नलनी जल विच वसे, चंपा बसे अकास ,
हो रहे हैं। इमरसन महाशय के इस कथन में मौलिक जाको जासो नेह है, सो ताही के पास । सत्य है कि "महान् पुरुष एक ध्येय, एक राष्ट्र, एक युग जो लोग संसारी पुरुषों का सदा चिन्तन करते रहते है. वह अपने मन्तव्य की पूर्ति के लिए अनन्त व्यक्तियों हैं। उनकी सम्पत्ति और चरित्र के बारे में सोचा करते हैं और समय की अपेक्षा रखता है। यदि हम ऐसे महात्मा वे उन्हीं के पास हैं चाहे वे जंगल में ही क्यों न बैठे हों से अपना सम्पर्क जोड़कर उसकी शुभाकांक्षाओं की और जो व्यक्ति त्यागी महापुरुष का नित्य प्रति ध्यान पूर्ति के साधन बन जायें तो हम अपने आपको ही करते रहते हैं वे संसार के अनेक कार्य करते हुये भी उन ऊँचा उठा लेंगे। महान् पुरुष अपने सम्पर्क में माने महान् पुरुषों के समीप ही हैं। किसी भी महान् पुरुष वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व को दबाते नहीं; थे. अपने