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________________ जैन विवेक प्रकाश. AxQax D Doa ઝળહુળતા ભાનુથકી, થાય તિમિરને નાશ મિથ્યામત ઉચ્છેદવા, જૈન વિવેક પ્રકાશ, विदेशी खांगनी सृष्टता कार' ए कहेवत सर्व कोई आहार तेवो जाणेछे. वळी शास्त्रमां कां छेके: जेवा प्रकारनुं अन्न खावा मां आवेछे, तेवा प्रकारनी बुद्धि थायछे, जेमके दीवो घोर अंधारानुं भक्षण करेछे तो तेंमांथी काजळ पेदा थाय छे. तेवीज रीने अशुद्ध अने तामस खानपानथी जेमनी बुद्धि भ्रष्ट थइछे. अने विनाशकाले विपरीत बुद्धि सुझवार्थी जेमने सारा खोटा नो - लाभहानिनो विचार रह्यो नयीं एवा लोको देशद्रोही अने धर्मभ्रष्ट थई दुराचार अने अधर्ममां प्रवृत्त थई रह्याछे. तेनो मु ख्य दोष मोरेस खांडनु सेवन ज छे. कारण ते अपवित्र पदा र्थो वाळी छे. सर्व कोई जाणेछे के खांड अने गोळ शेलडीना रसमांथी बनेछे अने ते दुध वडे साफ थाय छे। अने तेवी पवित्र खांड मधुर स्वादीष्ठ, वीर्यवर्धक, सर्व रोग हारक, बळकारक, तृप्तिकारक, श्रमनाशक, नेत्र हितकारी, कान्तिजनक, तथा शी तल अने अत्यंत गुणकारी होवानुं वैद्यक शास्त्र जणावेछे. आ वीं बळ बुद्धि अने आयुष्यवर्धक शर्करा आगळ आदेशमां पुष्कळ थती हती. चौदमी सदी सुधी युरोपमां खांडं कोई ना म निशान पण नहि जाणतुं हतुं, गोळ खांड अने शांकर भर तखंडमांथी लाखोंमण परदेशमा जती हती. सने. १८३६ मां बे करोनी खांड अहीथी दरदेश गई हती. खांडनो उद्योग धम p
SR No.544071
Book TitleJain Vivek Prakash Pustak 11 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Yati
PublisherGyanchandra Yati
Publication Year
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vivek Prakash, & India
File Size6 MB
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