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________________ जैन विवेक प्रकाश. थती हशे. परंतु नजरे जोवाथी घणुंज आश्चर्य लाग्युं अने आवी खांड मारा देशीभाईओ सहर्ष सेवन करेछे ए जाणी मने असी म दुःख थयु. अने केटलाक दहाडा सुधी तो तेनी एवी सज्जड असर मारा मन उपर रही के ज्यारे ए खांड याद आवती हसी त्यारे चित्तभ्रमित थई वमननी शंका थई आवती हती. मारे वारं वार चकित थर्बु पडतुं हतुं के हिंदुस्थाननी प्रजा मात्रने जे नो स्पर्श करवायीज महापाप लागेछे ते एनुं सेवन केम करेछे ? अहिंसा परमो धर्मः ए जैनोनो तो परम माननिय धर्मछे अने कोई पण हिंदु हरकोई चीजनुं सेवन करतो होयछे एने कोई ए चीजने माटे कहेके एतो' गोरक्त अने मांस बराबर छे तो ए शब्दो काने पडतांज ए चीज गमे तेवी सारी हशे तो पण ते फेंकी देशे अने पछी तेना सामुंजोसे पण नहिं. तेवीज रीते मुसलमान भाइयो पण सुअरन नाम देतांज गमे तेवी उत्तम चीन हशे तो पण तेना सांसुं नाहं जुवे अने मुडदाल चीजनुं तो सेवन पण नहिं करे. पण आ परदेशी खांडमां तो केटला बधां सुअरना हाडकां भेळवता हशे ? ये लोको मांस भोजीछे अने मोटा भागे सुअर-डुक्कर, मांस खावानो विलायतमां विशेष प्रचार छे. तथा त्यां सुअरनां हाडकां पुष्कळ मळतां होवां जोइये. वळी हिंदमांथी दरवर्षे एकलाख टन हाडकां विलायत जायछे अने खातर तथा खांड वगेरे पदार्थो बनाववाना काममा ते लेवाय छे येवू कलकत्ताना ता. ३०-११-०३ ना हिंदी बंगबासी पत्रमा लखेलुछे. अहींथी जतां हाडकामां पण सुअरनां तेमन चेपी-झेरीरोग तथा साप अने हाडकायां कुतरां विगेरे पाणीयोना करडवाथी मुवेला ढोरोना हाडकां पण होय छे अने तेनो भुको खांड साफ करवामां वपरायछे. वळी मुडदाल हाड. कां अने मूडदाल जानबरोना लोही तेमज माणसनु मूत्र मेळव. वामां आवेछे. जेथी हिंदु के मुसलमान कोई पण आ अपवित्र खांडने अडकी शके तेभ नहि होवा छतां पण आ अपवित्र मोरस खांडनो आटलो बधों प्रचार केम वधी गयो आखा देशमां .
SR No.544071
Book TitleJain Vivek Prakash Pustak 11 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Yati
PublisherGyanchandra Yati
Publication Year
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vivek Prakash, & India
File Size6 MB
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