SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन विवेक प्रकाश ११ खांडना जेवी गुणदायक, स्वादीष्ट अने ठंडी नथी ज होती पण रोगकारी अने बदस्वाद होय. छे. खांडमाथी शाकर बनाववी होय तो तेनो रस बनावी दूधथी मेलकाढी नांखवो जोइये. फरी तेवी यांसणी बनावीने छाछरमां अगर हांल्ली के मांटलीमां दाळीने तेमां एक मिश्रीनो टुकडो नांखी देवो जोइये जेथी मिश्रीनो घटकावयत्र उत्पन्न थइ मिश्री - शाकर बनी जशे थोडो रस बाकी रहीजाय तो तेनी फरी खांड बनावी लेवी जोइये अथवा ते रस बीजा कोईपण 'काममां लइ लेवो जोइये. संयुक्तप्रांतमा गोळ मांथी खांड बनाववा मां सेवालनो उपयोग करी तेनी मिश्री बनावेछे. लखनउ अने बिकानेरनां एक वे तलावोनुं पाणी एटलुं बध्धुं सारुंछे के तेना थी मिश्री घणीज सफेद अने चमकदार बनेछे. जे औषधिमां काम आवेछे अने घगीज मोंधी वेचाय छे. परदेशी लोको कदापि मिश्री बनावता नथी. ते लोको 'लुफशुनर' चमकली दाणादार खांडज पसंद करे छे परंतु तेमां अने आपणी मिश्रीमां आस्मान जमीननो तफावतछे. गोळ खांड शाकर विगेरे पदार्थो आपणा देशमां ज बनता अने अही थी ते परदेश खाते जताहता. बंगबासी, कलकता, ता. २०-११-०५ मां लखें छे केः-स्वदेशी खांड शेलडीमांथी बने छे अने दुधभी साफ थाय छे तेथी ते पवित्र स्वादिष्ट अने रोगनाशक होय छे. त्यारे विदेशी खांड बीट गाजर वगेरेनी बने छे अने ते साफ करवामां एवीं गंदी अने कत्सित चीजो वपराय छे के जेनुं नाम सांभाळतां कंपारी आवे छे तथा ग्लानि थाय छे. भारत वर्ष आजकाल दुःखी दरिद्र थइ रहयो छे तेनुं कारण एछे के लोको धर्मनी कंइ दरकार नहि राखतां सस्ती चीजपर तुटी पडे छे, जेमने पोताना धर्मनो कइ पण ख्याल छे अने "
SR No.544071
Book TitleJain Vivek Prakash Pustak 11 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Yati
PublisherGyanchandra Yati
Publication Year
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Vivek Prakash, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy