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________________ * अहिंसा-वाणी राह ली। चलते समय कँजड़े ने अपने सेवों का बखान किया, "बाबू साहब, इतने लाजबाब सेव आपको बाजार भर में न मिलेंगे।" प्रभात में घर अाकर खाने के लिए जब उन्हें निकाला तो पहला प्राधा गला हुश्रा निसला अया, दूसरा को पूरा सड़ा, शेष दो सेव भी मल-सड़े निकल गए । जरा सी लापरवाही में यही माझाना मामूली बात है। . भारतवर्ष में विविध प्रकार के मूठे विशान करके लोगों को ठभा जाता है। हम भी इनके कई बार शिकार बने हैं। हमने कई ऐसी वौपियां छुड़ाई हैं जिनमें हमें। कुछ भी पल्लें न पड़ा गांठ के समय ही मा। ____ वस्तुतः श्राज के भारत को राष्ट्रीय चरित्र के विषय में विदेशों से बहुत कुछ सीखना है। विदेशों में धोखेाजी, दगाबाजी, बेईमानी नहीं होती जैसी कि भारत में पद-पद पर देखने को आती है। इङ्गलैण्ड में समाचार-पत्र एक निर्दिष्ट स्थान पर. रखे रहते हैं । श्राप जाइए उनका मूल्य वहाँ रख दीजिए और अखबारो लागि क्या भारत में यह सम्भव हो ककता है ? यहाँ एक जगह अस्वचार रखदीजिए तो घण्टे भर बाद आपको पता भी न चलेगा कि वे कहाँ गए । यह है वहाँ और यहाँ के राष्ट्रीय चरित्र का अन्तर ! _____एक स्वीडेन का उदाहरण और लीजिए । उत्तर प्रदेश के वर्तमान स्वायत्त शासन मन्त्री माननीय मोहन लाल जी अपनी वैदेशिक यात्रा में स्वीडेन गए हुए थे। उन्हें एक कारखाने को देखने का अवसर मिला। कारखाना बड़ा था परन्तु प्रचन्छ । सुन्दर ! मन्त्री जी को वहाँ के प्रबन्ध के विषय में जानने की जिगीषा हुई । उन्होंने यहाँ की सर्वोच्च अधिकारिणी महिला से पूछा कि कारखाने के कर्मचारियों को वेतन किस प्रकार दिया जाता है । उन्हें बताया गया कि प्रत्येक कर्मचारी जिस समय श्राता है उस समय उसमें कार्ड पर मशीन के द्वारा वह समय लिख जाता है इसी प्रकार बाते समय का समय भी कार्ड पर अंकित हो जाता है। इसी कार्ड के अनुसार सब को सब का वेतन मिलता है। परन्तु खास बात तो यह कि कर्मचारियों की संख्या वहाँ हजागे हैं और सब को सुविधा से तनख्वाहें मिल जाती हैं। सब के वेतन अलगअलग लिफाफों में बन्द करके और उन पर कर्मचारी का नाम लिखकर एक मेज पर रख दिए जाते हैं । वहाँ से प्रत्येक अपना-अपना वेतन ले पाता है। दूसरे का छूता भी नहीं । मेज पर सभी प्रकार कम-अधिक वेतन पाने वालों की तमख्याई रखी रहती हैं परन्तु कोई किसी दूसरे का लिफाफा नहीं छूता । यह है राष्ट्रीय चरित्र ! मन्त्री जी ने यह भी पूछा कि कभी कोई गड़बड़ी तो नहीं होती। उन्हें विदित हुश्रा कि कमी भी कोई गलती नहीं होने पाती है । क्या यह भारत में किया जा सकता है ! । एक युग था जब भारत के घरों में वाले भी नहीं पड़ते थे परन्तु अब वो बिना ताले काम न चलने का । यह अवस्था क्यों हुई? यह नैतिक हास क्यों हुन्ना ? ईवयें
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
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