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________________ K awan HARपादकीय. - हमारा राष्ट्रीय चरित्र श्राज भारतीय जन-जीवन का नैतिक स्तर कितना गिरा हुअा है, यह किसी से छिपा नहीं है। हम जीवन की महत्वपूर्ण ही नहीं प्रत्युत छोटी-छोटी बातों में भी अपनी स्पर्थपरता से विलग नहीं रहते हैं। हमारे राष्ट्र के चारित्रिक स्तर की प्राज शोचनीय अवस्था है । क्या सफाखाने, क्या डाकखाने, क्या रेल विभाग श्रादि सभी में कितने ही धूर्त लोग घुसे हुए हैं। पुलिस विभाग का तो कहना ही क्या ? चोर बजारी की तो कुछ बात ही न पूछिए । भ्रष्टाचार दिन दूना रात चौगुना बढ़ ही रहा है । नए नए संक्रामक रोग भी फैल रहे हैं। जीवन की नैसर्गिकता जाती रही है। मानव की पाशविक प्रवृत्तियाँ बलवती हो रही हैं । अहिंसक जीवन का अभाव है। -सीधे, सच्चे, निस्पृह, संयमी सजन अब अपवाद स्वरूप रह गए हैं। ____ जीवन का कोई भी क्षेत्र क्यों न ले लीजिए, वहाँ आप को चारित्रिक पतन के लक्षण दिखाई देंगे । अाज भारतवर्ष में विदेशों जैसा राष्ट्रीय चरित्र नहीं रहा है। सच पूछा जाय तो अंग्रेजों के एक तिहाई विश्व पर शासन करने की क्षमता, उनके राष्ट्रीय चरित्र का ही परिणाम थी। यहाँ चरित्र से भारत का रूढ़ि अर्थ न लेना चाहिए । चरित्र का अभिप्राय यहाँ राष्ट्री । चरित्र से है केवल व्यक्ति के चाल चलन मात्र से नहीं, यद्यपि यह भी उस में सन्नहित रहता है। राष्ट्रीय चन्त्रि में ईमानदारी, सचाई, निष्ठा प्रभृत मानवीय गुण पाते हैं। इन्हीं बातों में जरा देखिए भारतवर्ष कितना गिरा हुआ है । यहाँ आप यदि सेम्पिल देख कर कोई वस्तु मंगाते हैं तो वह आपको बिल्कुल वैसी ही मिल सकेगी- इसमें सन्देह है । यहाँ तो इतना ठगई का जाल फैला हुआ है कि श्राप की जरा आँख बची और श्राप ठगे गए । मुंशी प्रेमचन्द जी एक बार सेव खरीदने गए । उन्होंने कॅजड़े को रूमाल देकर कहा-इसमें श्राधा सेर सेव जरा अच्छे-अच्छे छाँटकर दे दो । कँजड़ा समझ गया कि ये अांखों से काम लेने वाले और सौदा वापिस करने वाले बाबू नहीं हैं। उसने अपने लड़के को रूमाल देकर कहा कि जा चुन-चुन कर आधा सेर सेव इन बाबू साहब के लिए ले श्रा। वह गया और बँधे हुए अाध सेर सेव ला दिए । प्रेमचन्द जी ने दाम दिए और अपनी
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
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