SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कदम डगमगा उठे (श्री सागर मल वैद्य) कदम डगमगा उठे . क्यों किसलिये ? कि पैर थर थरा उठे कि जग उठा है अब मनुजग कि भोर हुआ पूर्व से कि बढ़ चला है अब मनुज कि चीन से कि रूस से 'कि सो चुकी है दासता कि रुक गये हैं ये कदम कि सो च की है हीनता कि उठ चुके थे जो कदम कि मिट गई है दीनता कि हार गये सियोल में कि माँगते अधिकार अपने कि हार गये चीन में कि जानते अधिकार अपने बस इसलिये कि मिट रहा है भेद अब कि डर रहे हैं ये कदम कि तू गरीब, मैं अमीर कि मैं गरीब, तू अमीर कि थक गये हैं ये कदम जग उठा अब मनुज कि अब डरेंगे ये कदम तब फिर:कि एक स्वर एक गीत कि एक ही निशान हो कि एक ही डगर बढ़े कि एक ही गुमान हो कि एक ही आवाज में कि एक ही आवाज हो कि रुके नहीं झुके नहीं कि बढ़े चले बढ़े चलो! जागरण ( रचयिता साहित्यालकार श्री परमेश्वर लाल जैन 'सुमन', समस्तीपुर ) काली रजनी अब भाग चली, दै सुन्दर रक्तिम सुधा अमर । निकली प्राची से किरण ज्योति, निकला धीरे से अरुण प्रखर ॥ . निष्प्राण विवश कंकाल सभी, अब जल्दी-जल्दी जाग रहे । जो उनका था, वह उनका है, वे अपना सब कुछ माँग रहे । इन अस्थि-चर्म के पुतलों से, चिनगारी निकली अमिट लाल । इन भूखे किसमत वालो के, उर में टकराई अग्नि ज्वाल । अब तो दलितों की आँख खुली, अब तो संसार नया होगा। जंजीर "पुरानी टूट गई, अब तो उद्गार नया होगा। - अब दिग्दिगन्त हँसता रह-रह, मचगई क्रान्ति की नवल धूम । - अब तो सागर रह-रह कर है, भारत का पद-तल रहा चूम ।। &00-00
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy