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* अहिंसा-वाणी सके। भारत में भी सरकार यदि यदि पहले ही ले लिया जाय और प्रगति की ओर देश को ले जाना चाहती इंकमटैक्स की तरह प्रान्तों में बाँट है तो देश की स्वतंत्रता उसमे सहायक दिया जाय तो बहुत बड़े यतन से देश होगी। उपयुक्त जनमत बनाने या बनने की रक्षा हो सकती है। पर हमारे देने का साधन भी अधिकतर सर- नेता इसे समझे तब न यही कठिनाई कार के ही नियन्त्रण में है। पुरानी है। हमारा देश पिछड़ा देश है उसमें कहावत है "यथा राजा तथा प्रजा"- इस तरह के टैक्स मनौवैज्ञानिकतः वर्तमान रूप में यही “यथा प्रजा तथा बड़े ही हानिकर हैं हर तरह नुकराजा" कहा जाता है । पर दोनों ही सान देने वाले । रूपए तो दूसरे समान रूप से लागू एवं सही है। तरीकों से भी उतने ही दूसरे तरह के ___अभी तो हम पाते हैं कि जनता करों द्वारा उगाहे जा सकते हैं। के दुख घटे नहीं और हर ओर टैक्सों फिर सब के ऊपर घूस रिशवत की जैसे बाढ़ सी आ गई है । डाइरेक्ट ने तो जनता को और तबाह कर टैक्स तो अब भी हानिकर हैं। खास रखा है। कानून बनाने वाले घूस देने कर सेल्सटैक्स जैसे टैक्स जो सीधा वाले को ही सजा देने की बात बारआम जनता से हर बार जब वह कुछ बार करते हैं। पर घूस देने वाला भी जरूरी वस्तुएँ लेने बाजार जाता है उसी को घूस देने की हिम्मत करता तो उसे देने पड़ते हैं। यह विरोधी है जो लेता है। यदि कड़ी कारवाई भावनाओं को जन्म देने वाला और इस विषय में वी जाय और घूस देशहित का घातक है। साथ ही लेने वाले का जुर्म पचासी फीसदी व्यवसाई लोग कम्पीटिशन में काफी और देने वाले का पन्द्रह फी सदी अवाचार की तरफ जाने को मजबूर समझ कर ही दोनों को सजा होते हैं कुछ जीने के लिए कुछ दी जाय तो काफी कमी इस अनासंचय और लोभ से। इन सब का चार या भ्रष्टाचार में भी हो सकती इका प्रभाव देश को अवनति की है। आज देश के लिए सरकारी तरफ ही ले जाने वाला हो सकता है। उच्चाधिकारियों की गिरावट सबसे जिस व्यक्ति ने भारत में पहले पहल बड़ी समस्या और देश की या जनता इस टैक्स का जन्म दिया उसने देश की पतन की जिम्मेदार है। स्वतंत्रता का बड़ा अहित किया। अब भी इसे का मतलब हम ठीक-ठीक समझ सकें बदला जा सकता है। आम जनता इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले से सीधा टैक्स न लेकर इम्पोर्टरों इसे दूर किया जाय । और प्रोड्यूसरों (Importers सारी कमियों के बावजूद भी & producers) से यही टैक्स
(शेषांश पृष्ठ ३७ पर)