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________________ * अहिंसा-वाणी के आत्महीनता के भाव दूर कीजिए! होते हैं। अतः तुम दीन-हीन मत - वाह्य स्वतन्त्रता आन्तरिक बनो। कमज़ोरी और बुज़दिली के आजादी प्राप्त करने के लिए एक विचार मनों मंदिर से वाहिष्कृत कर प्रवेशद्वार है। यदि हमें राजनैतिक दो। नई पीढ़ी को सतर्क रहकर बल आजादी हासिल हो गई है, तो हमें वान साबित करना है। इसी को सब कुछ मानकर संतुष्ट नहीं भारत आजाद है, तो आजादी हो जाना चाहिए, वरन् इस भावी के साथ आने वाली कठिनाइयाँ भी उन्नति, विकास, परिपक्कता, का साधन उसके साथ हैं चोर, गठकटे, ठग, समझना चाहिये । स्वतन्त्र व्यक्ति का मजबूत राष्ट्र, उचक्के अपना-अपना निर्माण करना हमारा प्रथम पुनीत दाँव देख रहे हैं। ढोंगी मुफ्तखोर कर्तव्य है। अकारण ही झगड़ा करने को प्रस्तुत मन से आत्महीनता; कमजोरी, हैं। इस वातावरण में हमें अपने दुर्बलता के तमाम विचारों को हटाकर अन्तर में व्याप्त जो गुलामी की जड़े आत्म निर्भरता, मौलिकता, धैर्य, हैं, वे बाहर निकाल फेकनी हैं । केवल निर्भीकता सौभ्य मनुष्यत्वादि गुणों बलवान व्यक्ति ही इस दुनिया में को विकसित करना ही आन्तरिक आनन्दमय जीवन व्यतीत करने का आजादी की ओर अग्रसार होने का अधिकारी है। जो निर्बल, अकर्मण्य, मार्ग है। हीन स्वभाव हैं वे आज नहीं तो कल दुर्बल को सब मारते हैं। “दुर्बल- किसी न किसी प्रकार दूसरों द्वारा देवो घातकः । दुर्बल सबलों का आहार चूसे जायँगे और आजादी से वंचित है। बड़ी मछली छोटी को निगल कर दिये जायेंगे। जाती है। बड़े वृक्ष अपना पेट भरने जिन्हें अपने स्वभाविक अधिकारों के लिए छोटे पौधों की खूराक झपट की रक्षा करते हुए सम्मान पूर्वक लेते हैं। बड़े कीड़े छोटों को खाते हैं। जीना है, उन्हें आन्तरिक आजादी गरीब लोग अमीरों द्वारा शोषित अवश्य प्राप्त करनी चाहिए। [पृष्ठ २ का शेषांश ] २००० वर्ष पूर्व मानव जाति कोवह पाठ पढ़ाया था जो उसने कभी नहीं पढ़ा था और जो फिर कभी विस्मृत नहीं किया गया है और वह पाठ यह था कि ऐसा राज्य संभव है जहाँ निम्नतम की बात भी उसी प्रकार सुनी और समझी जायेगी जैसी उच्चतम की।"x -जजलनेंड हैण्ड xअमेरिका के एक प्रमुख न्यायशास्त्री जज लर्नेड हैण्ड द्वारा न्यूयार्क में दिये गये भाषण का कुछ अंश । 'अमेरिकन रिपोर्टर' के सौजन्य से ।
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
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