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________________ हमें आन्तरिक स्वतंत्रता चाहिये (ले०-प्रो० रामचरण महेन्द्र एम० ए०, दर्शन-केसरी, विद्या-भास्कर ) स्वतन्त्रता दो प्रकार की होती है- जाति में होनी अनिवार्य है। हम वाह्य अर्थात् ऊपरी दृष्टि से बन्धन- ग़लत शिक्षा हीन, बनानेवाली पुस्तकों, मुक्ति । भारत पर ब्रिटिश राजनैतिक भोगवाद, की छाया में पल रहे हैं। सत्ता थी, किन्तु अब उस वाह्य सत्ता · इस वातावरण में भारतीय युवक की के हट जाने से राजनैतिक दृष्टि से. सर्वोच्च मानसिक शक्तियों का विकास भारतीय स्वतन्त्र हो गये हैं। किसी संभव नहीं है। विदेशी सत्ता की हुकूमत अब हमारे मनोराज्य वह सूक्ष्म सत्ता है, ऊपर नहीं है। भारत ने राजनैतिक जहाँ क्षण-क्षण में संसार के महान् आजादी (वाह्य स्वतन्त्रता) वर्षों के साम्राज्य निर्मित एवं धराशायी होते कठिन संघर्षों के उपरान्त प्राप्त कर रहते हैं। मन की स्वतन्त्रता की अद्भुत ली है । वाह्य दृष्टि से हम मुक्त हैं। अजेय शक्ति द्वारा विश्व में स्थायी आन्तरिक स्वतन्त्रता क्या है ? प्रेम, सत्य, अहिंसा, सहयोग का प्रेम दूसरी स्वतन्त्रता आन्तरिक है। साम्राज्य स्थापित हो सकता है। आन्तरिक स्वतन्त्रता से हमारा तात्पर्य आज का शिक्षित कहलाने वाला उन परतन्त्रता, निकृष्टता, आत्महीनता युवक एक आन्तरिक अज्ञान का के विचारों से मुक्त होना है, जो चिर- शिकार है, जो भोगवाद और सांसकालीन गुलामी के कारण हमारे गुप्त रिकता ने उसे दिया है। इसके कारण मन में जटिल भावना ग्रन्थि (Com- आज का मानव अतृप्ति, स्वार्थ, ईर्षा, plexes) बन कर रह गये हैं। हम निष्ठुरता, दंभ, अहंकार की भट्टी में अपने आपको कमजोर दीन-हीन जल रहा है । युग नहीं बदलते । युगों जाति मानने लगे हैं। हमे युग से को बनानेवाला मानव बदलता है। पीछे रह गये हैं। अंधविश्वास मनुष्य की विचार धारा में परिवर्तन दकियानूसी धारणाएँ। आत्महीनता होने का नाम ही युग परिवर्तन है। (Inferiority Complexes) की जैसे-जैसे युग की गुलाम विचारधारा कुत्सित पोच विचारधाराएँ हमारे बदल कर आन्तरिक आजादी के तरफ अन्तर मन में बैठ गई हैं। हमारी विकसित होंगे, वैसे-वैसे मानव जाति बुद्धि में वह ताज़गी और आजाद और आधुनिक समाज की उन्नति और ख्याली नहीं रही है जो एक स्वतन्त्र विकास होगा।
SR No.543517
Book TitleAhimsa Vani 1952 08 Varsh 02 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherJain Mission Aliganj
Publication Year1952
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Ahimsa Vani, & India
File Size11 MB
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