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जैन साहित्य संशोधक
तो तेना भागो महावीरनी सफल कार्यदक्षताने' लईने वधारे जुनो होय तो तेना तत्त्वज्ञानना स्वरूपमां पण जैनधर्ममा आवता गया ते सघळा संप्रदायोना केटलाक कांईक प्राचीनतानां चिह्नो देखावां'जोईए. आवं एक प्रीतिपात्र विचारो तेम ज तेमना प्रिय गुरुओ, जेओने चिह्न ए धर्ममा खास मळी आवे छे, अने ते तेनो, सवळी तेओ चक्रवती अथवा तीर्थकरना नामे ओळखता वस्तु चैतन्य युक्त छे, एम बतावतो सचेतनवाद छे. ते हता, ते सघळां दाखल थई गयां होय तो तेमां नवाई वाद जणावे छे के मात्र वनस्पतिमा ज नहीं परन्तु पृथ्वी, नथी. अलबत् आ एक मात्र मारूं अनुमान छे. परन्तु पाणी, अग्नि, अने वायुना कणोमां पण आत्मतत्त्व रहेखें आ अनुमाननी मददथी आपणे जैनोनी आचार्यो साधुओ छे. मानवजातिशास्त्र ( Ethnology ) आपणने एम विषयक विलक्षण परंपरानु उत्पत्ति कारण समजी शकीए शीखवे छे के जंगली लोकोनी तत्त्वज्ञान विषयक सघळी छीए. प्रत्यक्ष प्रमाणनो ज्यां सर्वथा अभाव होय त्यां मान्यताओ सचेतनवादमूलक होय छे. आ सचेतनवाद आपणने अनुमानो उपर ज आधार राखवो पडे छे, जेम जेम जनसंस्कृति वधती जाय छे, तेम अने ए अनुमानोमां पण जे अनुमान विशेष सत्य- तेम शुद्ध मनुष्यत्वरूपमा ज मात्र परिणत थतो सांभळतां खरूं लागे एवं-होय ते स्वीकारवा योग्य बने जाय छे. आथी करीने जो जैन धर्मनुं नीतिशास्त्र मोटे छे. फक्त आ बाबत ने छोडीने बाकीनी जे जे बाबतो भागे आ प्राचीन सचेतनवाद-मूलक होय तो जैनधर्मनी आ प्रस्तावनाना प्रारंभनां पानाओमां में मारी कल्पनानु- पहेल वहेली उत्पत्तिना समये ते सचेतनवादनो सिद्धांत रुपे रजु करेली छे ते सघळी आना करतां वधारे प्रमाण- हिन्दुस्ताननी प्रजाना मोटा भागोमां विस्तृतरुपे विद्यमान मत छे, ए हुँ अत्रे खास जणावी दऊ छं. ए बधा वि- होवो जोईए. आ परिस्थति ते अति प्राचीन समयनी चारोमां मारा कोई पण कथनथी जैन परंपरागत कथन होई शके के जे वखते हिन्दुस्तानना मनुष्योना मन उपर के-जे लेखी पुरावा ओना अभावमां आपणने एक मात्र उंचा प्रकारनी धार्मिक मान्यताओए अने पूजानी पद्धतिते ज मार्गदर्शक बने छे-तेने आघात पहोचतो नथी. ओए असर करी न होती. अने बीजुं, मारी एके कल्पना पण एवी नथी और
जैन धर्मनी प्राचीनतानुं बीजु चिन्ह ते तेनी वेदान्त के जे ते समयनी परिस्थिति अनुसार असंभबित
अने सांख्य जेवा बे सौथी प्राचीन ब्राह्मण दर्शनोनी साथे
र लागे. जैन धर्मना प्राचीन इतिहासनी रचनामां
रहेली सिद्धांतविषयक समानता छे. ते प्राचीन कामुख्य स्थान राकनार जे, ए रक हकीकत छे के, महा
लमा तत्त्वज्ञानना ( Metaphysics ) विकास क्रमा वीरना समयमा पार्श्वनाथना शिष्यो हयाती धरावता हता
गुण नामना पदार्थनो जेवो जोईए तेवो खुल्लो अने स्पष्ट अने जेनो निर्देश बतावती परंपरा पण विद्यमान होई
ख्याल थई चूक्यो ह न हतो; परन्तु ते पदार्थ द्रव्यपतेनी सत्यता पण अत्यारना सबळा विद्वाना एके अवाजे
दार्थमाथी उत्क्रांत थई रह्यो हतो एम लागे छे. जे जे स्वीकारे छे, तेनो ज में अहिं उपयोग कर्यो छे.
वस्तुने आपणे गुण तरीके ओळखीए छीए ते, ते वखते __ हवे आ रीते जो जैनधर्म ए एक प्राचीन कालथी
भूलशी वारंवार द्रव्य तरीके मनाई जती अने केटलीक वखते चालतो आवतो धर्म होय अने महावीर तेम ज बद्ध करतां
द्रव्य साथे तेनुं मिश्रण पण थई जतुं. वेदान्तमा परब्रह्मने १ खरखर महावीर तेमना पोताना मार्गमा एक महान व्यक्ति
. शुद्ध सत्ता, ज्ञान, अने आनन्दरूप स्वाभाविक गुणथी इशे, तेम ज तेमना समकालीन पुरुषोमा त एक उत्तम प्रकारना सम्पन्न नहीं, परंतु सत्, चित्, अने आनंदस्वरूप ज माननेता पण हशे, तमां शक नथी. तेमनी तीर्थ कर पद-प्राप्तिमा जे. वामां आव्यू छे. सांख्यमा पुरुष अथवा आत्माना स्वभाटले शे, तमो पोताना मतनो प्रसार करवायी संपादित करेलो
वनुं वर्णन करती वखते तेने ज्ञान अथवा तेजोरूप बताबतेमना या क रयाभूत थयो छ तेटले वधे अंशे तेमन पवित्र जीवन कारण भूनन होतु थर्मु.
वामां आव्यो छे. अने जो के सत्त्व, रजस्, अने तमस्,