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________________ अंक ४ डॉ. हर्मन जेकोबोनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना एत्रण पदार्थोंने गुणरूपे गणाव्या छे खरा, परंतु गुणनं जे लक्षण आपणे स्वीकारीए छीए ते अनुसार ते गुणो थई शकता नथी. प्रो० गार्बेना जणाव्या प्रमाणे वास्तमां ते मूळ प्रकृतिना अवयवो ज छे. आ ज प्रकारना सिद्धांतने लईने सामान्य रीते जैनोना प्राचीन सूत्रोमा द्रव्य अने तेना पर्यायोनो ज मात्र उल्लेख करेलो होय छे. सूत्रोमा गुण पदार्थनो ज्यारे कोईक ज ठेकाणे उल्लेख थलो मळी आवे छे त्यारे पाछळना बीजा बधा ग्रंथोमां ते नियमित रीते वर्णवेलो होय छे. आ उपरथी एम स्पष्ट जणाय छे के ते पाछळना काळमां स्वीकारवामां आव्यो होवो जोईए. अने तेनुं कारण न्याय वैशेषिक दर्शनोना तत्त्वज्ञान अने साहित्यनी जे असर धीमे धीमे भारतवर्षना वैज्ञानिक विचारों उपर थती हती ते ज होवुं जोईए पर्याय एटले विकास अगर अवस्थान्तरनी मान्यतामां गुण जेवा स्वतंत्र पदार्थने स्थान ज मळी शके तेम नथी. कारण के द्रव्य दरेक काळमां तेना पर्यायना रुपमां ज रहे छे, अने तेथी करीने पर्याय गुणात्मक ज होय छे; अर्थात् पर्यायो नी अंदर गुणोनो समावेश थई ज जाय छे. अने आ ज विचार प्राचीन सूत्रोमां लीघेलो होय तेम जणाय छे. अन्य एक उदाहरण, जैनोए जे अद्रव्यत्वयुक्त पदार्थ उपर द्रव्यत्वना आरोप करी, वास्तविक रीते जे वस्तु गुणना वर्गमां आवी जाय हे तेवी ' धर्म ' अने 'अधर्म' एबे वस्तुओ, विषयक छे. आ बे वस्तुओने जैनोए द्रव्य तरीके वर्णवी छे के जेनी साथे जीवनो संबंध रहे होय छे. आ द्रव्योने आकाशनी साथे ज संपूर्ण लोक व्यापी मानेला छे. वैशेषिको पण आकाशने द्रव्य माने छे. जो ते समयमां द्रव्य अने गुण ए बने पदार्थों भिन्न भिन्न वर्गीकरण थयुं होत अने बन्ने अन्योन्याश्रित मनाता होत, के जैम वैशेषिको माने छे, (मुणाश्रयं द्रव्यम् अने द्रव्यान्तर्वतीं गुणः ) तो उपर जणावेल गो टाळा भरेला विचारो जैनोए कदापि स्वीकार्या नहीं होत. १ आ कल्पना मूळ वैदिक हिन्दुओनी हती, तेम मोल्डनबर्ग पोताना Die Religion des veda नामना पुस्तकना पृ० ३१७ उपर जणान्युं छ. उपरोक्त विवेचन उपरथी स्पष्ट जोई शकाय छे के वैशेषिक दर्शन साथे जैनोना केटलाक विचारो मळता आता होवाथी जैनधर्मनी उत्पत्ति तेना पछी थई छे, एवो जे मत डॉ० भाण्डारकरे उपस्थित करेलो छे तेनी साथे हुं समत थई शकुं तेम नथी. वैशेषिक दर्शनना स्वरुपनुं संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रमाणे आपी शकाय केसंस्कृत भाषा बोलनार तथा समजनार बधा माणसोए मनन करला सर्वसाधारण विचारांनी जे पद्धतिसर व्यवस्था अने तेनुं जे तात्विक प्रतिपादन निरूपण, ए ज वैशेषिक दर्शन छे. आ प्रकारनुं पदार्थविज्ञानशास्त्र प्राप्त करवानुं काम तो घणा प्राचीन काळथी शुरु थयुं हशे अने कणा - दना सूत्रोमा जेवुं ए शास्त्र संपूर्ण रूपे प्रतिपादित थयं छे तेवु तैयार थता पहेला मनुष्योने घणी सदीओ सुधी धीरजथी मानसिक परिश्रम उठाववो पड्यो हशे ; तेम ज तत्त्वज्ञानविषयक सतत चर्चाओ चलाववी पडी हशे आथी वैशेषिक दर्शननी आदि अने अंतिम स्थापनानी वच्चेना काळमां जो वैशेषिक विचारो लई लेवानो खोटो या खरो आरोप जैनो उपर मूकवामां आवे तो, ते कदाच तेम संभवी शके खरूं आ स्थळे बीजी एक बाबतनो उल्लेख करवो अस्थाने नहीं गणाय, अने ते ए छे के जे मुद्दाओ हुं अत्र चर्चवा इच्छु छु ते मुद्दाओने लईने डॉ० भाण्डारकरनो एवो मत थलो छे के 'जैन। ना विचारो ते एक बाजू सांख्य अने वेदान्तदर्शन अने बीजी बाजु वैशेषिक दर्शन एम बे पचनी व चेना समन्वयना आकारना छे. ' परन्तु प्रस्तुत चर्चाीने माटे तो ते बन्ने प्रकारना विचारो सरखा छे: - एटले के साक्षात् लेबुं अगर वे प्रकारना विरुद्ध विचारानुं तडजोड करवुं, ए एक ज छे. उपरोक्त मुद्दाओ नीचे प्रमाणे छे:( १ ) जैन दर्शन अने वैशेषिक दर्शन ए बन्ने क्रियावादी छे. अर्थात् ते बन्नेनुं मानवु छ के आत्मा उपर कर्म, कषायो तथा वासनादिनी साक्षात् असर थाय छे. (२) बन्ने दर्शनो असत्कार्यना सिद्धान्तने माने छे; एटले के तेमना मते कार्य ते तेना उपादान कारणथी भिन्न छे. परन्तु २ जुओ तमनो रिपोर्ट, सन १८८३-८४, ५. १०१
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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