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डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावमा
अंक ४ ]
- कायभावना एटले शारीरिक पवित्रतानो अचेल कोना आचारने उद्देशीने अर्थ समजावे छे. सच्चा वर्णनमांनी केटलीक विगतो टीकाना अभावे नहीं समजी शकाय तेवी दुर्बोध छे. परन्तु केटलीक तो तद्दन स्पष्ट छे अने ते, केटलाक प्रसिद्ध जैन आचारो साथे संपूर्ण सादृश्य धरावे छे. दाखला तरीके अचेलको पण जैन साधुओनी माफक भोजननुं आमन्त्रण स्वीकारता नथी. तेओने माटे अभिहत अथवा उद्दिस्सकत अन्न लेवानो निषेध छे. आ बन्ने शब्दो जैनोना अभ्याहृत अने औदेशिक शब्दो ( जुओ पृ० १३२. टिप्पण ) समान होय तेम दरेक रीते संभावित छे. वळी तेओने मांस अने मदिरा लेवानी छूट नथी. 'केटलाक मात्र एक ज घरे मिक्षा लेवा जाय छे अने मात्र एक ज ग्रास खोराक ले छे. केटलाक वधारेमा वधारे सात घेर भिक्षा माटे जाय छे; केटलाक एक ज वार आपेलं अन्न लईने रहे छे; लकवा वारे सात वार सुधी आपलं लईने रहे छ' आ प्रकारना ज जैन साधुओना केटलाक आचा. गे कल्पसूत्रनी सामाचारीमां वर्णवेला छे (२६, भाग १, पृ० ३००, अने आ ग्रंथना पृ० १७६; गाथाओ १५ अने १९). नीचे वर्णवेलो अचलकोनो आचार अने जैनोनो आचार बराबर एक ज छे एम स्पष्ट जणाय छे. 'केटलाक हमेश एक ज वखत भोजन करे छे अने केटलाक बे दिवसमां एक ज वखत भोजन करे छे, ' इत्यादि अने ए रीते वधता क्रमे केटलाक ठेठ एक पखवाडीए एक वार भोजन ले छे. ' अचेलकोना आवा बधा नियमो अने जैनोना नियमो या तो लगभग एक ज छे अगर तो अतिशय मळता छे. अने आ प्रकारनुं साम्य जोवामां आवतुं होवा छतां, तथा सच्चक एक निगण्ठपुत्त गणातो होवाना लीघे तेमना धार्मिक आचारोथी ते परिचित होवा छतां, काय भावनाना आदर्श तरीके निग्रन्थोनो
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१ आ प्रकारना उपवासोने जैनो उत्यभत्त छहभत्त इत्यादि माम आरे छे (जुओ उ त ल्युमनसपादित औपप तिक सूत्र ३० I A); भने आ उग्वास करनारा सांधुओ अनुक्रमे चउत्थभ. त्तिय, छभ त्तिय, इत्यादि नामोथी ओळखाय छे. ( जुओ दा. त कल्पसूत्र सामाचारी २१. )
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उल्लेख करतो नथी ते खरेखर आश्चर्यजनक लागे छे. परन्तु आ आश्चर्यजनक बाबातने नीचेनी कल्पना द्वारा आपणे सहेलाईथी समजावी शकीए छीए, अने ते एवी रीते के बौद्ध ग्रंथोमां बहुधा जे असलना प्राचीन निर्ग्रन्थोनी बाबत ना उल्लेखो मळी आंव छे, ते (निर्ग्रन्थो ) जैन समाजना जे एक वर्गे महावीरना उग्र व्रतोनो स्वीकार कर्यो हतो तेओ नहीं, परन्तु महावीरना मतना विरोधी न बनता जेओ ते संयुक्त संप्रदायमां रहीने पण पोताना प्राचीन संप्रदायना केटलाक खास आचारोने वळगी रह्या हता ते प्रकारना पार्श्वना अनुयायिओ हता. आ प्रकारना केटलाक कठोर नियमो के जे प्राचीन धर्मना अंगभूत मनाता न हता अने जेमने महामीरे ज दाखल करेला हता, ते संभवित रीते तेमणे गोसालना अचेलक अथवा आजीविक नामे प्रसिद्ध अनुयायिओना लीघा हता. अने आनुं कारण ते तेओए ( महावीरे ) जे छ वर्ष सुधी गोसालनी साथ अत्यंत निकट सहचर तरीके रही तपश्चर्या करी हती, ते छे. आ प्रमाणे आजीविकोना केटलाक धार्मिक विचारो अने आचारोनो स्वीकार करवामां महावीरनो आशय गोसाल अने तेना अनुयायिओने पोताना पक्षमां लेवानो होय एम लागे छे; अने केटलाक समय सुधी तो आ उद्देश सफल पण थयो होय. परन्तु आखरे बन्ने नेताओनी बच्चे मतभेद थयो हतो, के जेनुं कारण घणुं करीने ए प्रश्न हतो के आ संयुक्त संप्रदायनो नेता कोण बने. गोसालने साथै थएला आ टुक समयना सम्बन्धी स्पष्टरीते महावीरनी पदवी घणी सुस्थित बनी हती; परन्तु गोसाले, जैन हकिकतो अनुसार, पोतानी प्रतिष्ठा गुमावी हती
अने आखरे तेना शोकपूर्ण अवसानथी तेना संप्रदायना भाविने सखत फटको लाग्यो.
आपणे जो के ते बधुं साबीत न करी शकीए, परन्तु महावीरे अन्य संप्रदायोमाथी घणुं लीधुं छे ए वात नि:संशय छे. जैन धर्म यथार्थमां एक संस्थिति रूप दर्शन नहीं होवाथी तेमां नवा मतो तथा सिद्धान्तोना उमेरा घासलाईथी थई शके तेम हतुं जे जे संप्रदाय अगर