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________________ १७२ जैन साहित्य संशोधक [खंड १ फकारामां (10p 168) बुद्धघोष जणावे छे के निगण्ठ हे महाराज, निगण्ठ चार दिशाना संवरथी संत छ. नातपुत्त थंडा पाणीने सचेतन मान छे ( सो किर सीतो- अने महाराज, आ प्रमाणे संवृत होवाथी ते निगण्ठ दके सत्तसञ्जी होति ) अने तेथी ते तेनो उपयोग नातपुत्तनो आत्मा मोटी योग्यतावाळो, संयत अने सुस्थित करता नथी. जैनोनुं आ मंतव्य अत्यंत प्रसिद्ध होवाथी छे." अलबत्त, आ जैनधर्मनुं यथार्थ तेम ज संपूर्ण वर्णन तेनी साबीती आपवा माटे सूत्रोमांथी अवतरणो आप नथी. परंतु तेमा जैनधर्मर्नु विरोधी तत्त्व पण नथी. आना वानी आवश्यकताने हं निरर्थक मार्नु छ. शब्दो जैनसूत्रोना शब्दो जेवा ज छे. में बीजे स्थळे पाली ग्रन्थोमांथी प्राचीन निगण्ठोना मंतव्यो संबंधी जणाव्युं छे तेम'चातुयाम संवर संवुतो ' ए वाक्य मात्र जे कांई माहीती हुं एकत्र करी शभ्यो छ, लगभग ते टीकाकारे ज नहीं परंतु मूळ ग्रन्थकारे पण खोटो रीते बधी उपर आपी दीधी छ. जो के आपणे इच्छीए तेना समजेलुं छे. कारण के पाली शब्द 'चातुयाम' ते प्राकृत करतां ते घणी अल्प प्रमाणमा छ, तो पण तेथी तेनी शब्द 'चातुग्गाम' नी बराबर थाय छे. अने आ प्राकृत किंमत बिल्कुल ओछी गणाय तेम नथी. प्राचीन निगण्ठोना शब्द नो एक प्रसिद्ध जैन पारिभाषिक शब्द छ जे मंतव्यो अन आचारोना संबंधमां जे उल्लेखो आपणे महावीरना (पंच महत्वय ) पांच महावतोथी भिन्न एवा एकत्र कर्या छ त सबळा, एक अपवादने बाद करतां पार्श्वनाथना चार व्रतोनो वाचक छे. आथी आ स्थळे वर्तमान जैन मन्तव्यो अने आचारो साथ मळता आव बौद्धोए, जे सिद्धान्त वास्तविकमां महावीरना बुरोगामी छे अने तेमांना केटलाक तो जैनोना खास मौलिक पार्श्वनाथने लागू पडे छ तेने, महावीर उपर आरोपित विचारो छे. आ उपरथी आपणने एम संदेह करवानुं करवामां भूल करेली छे, एम हुं धारुं छु. आ उपरथो जराए कारण नथी जडतुं के आ बौद्ध ग्रन्थोमांनी गोंधो एम सूचित थाय छे के बौद्धोए आ शब्दने निगण्ठोना अने जैन सिद्धान्तोनी रचना वच्चेना-अंतर्वती काळमां धर्मवर्णनमा लीधेलो होवाथी तेमणे ते पार्श्वनाथना अनुजैन सिद्धान्तोमा झाझो फेरफार भयो होय. याथियोना मुखेथी सांभळ्यो हो; अने बीजी ए पण कमें जाणी जाईने ज निगण्ठ नातपुत्तना मत विषयक ल्पना थई शके के महावीरना संशोधित मतो जो बुद्धना एक प्रधान फकरान विवेचन कर आ स्थळे मुलतवी समयमां सर्व सामान्यरीते स्वीकाराया होत तो पार्श्वनाराख्यु छ. कारण के ए फकरामां आपेली बाबत उपरथी थना अनुयायियो पण ते वखते ते शब्दनो उपयोग नहीं आपणने एक नवी ज पद्धतिए तपास करवानी जरूरत करता होत. बौद्धोनी आ भूल द्वारा हुं जैनोनी ए परंपराने रहे छ. आ फकरो दीघनिकायना सामञफल सुत्तमां सत्य स्थापित करी शकुं छु के महावीरना समयमां पण आपलो छे. हुं तेनु अहिं सुमङ्गलविलासनी नामे बुद्धघोष- पार्श्वनाथना शिष्या विद्यमान हता. वाली टीकाना अनुसारे भाषान्तर आपुं छ-' महाराज, आ पद्धतिए तपास करवानी शरुआत करतां अहिंयां एक निगड चारे दिशाना नियमनथी सुरक्षित पहेला हुं बौद्धोनी एक बीजी पण अर्थपूर्ण भूल तरफ छ (-चातुधाम संव(संवुतो). हे महाराज, की रीते निगण्ठ चार दिशाना संवरथी रक्षित छे ? महाराज, आ १ ग्रामबोल्ट Pali sept suttas मां, गेगी । Co gerly, अने बफ ( Burnout ) जे भाषान्तरे। निगण्ठ सघळु [थंडु ] पाणी वापरता नथी. सर्व दुष्ट कर्म आपेलां छे ते तेमणे टीकानी सहायता लीधा विना करेलां होवाथी करता नथी. अने सघळा दुष्कर्माना विरमणबडे ते सर्व दुर्लक्ष्य करवा जेयां छे. बुध पर्नु वर्णन परंपरागत ह के कपापोथी मुक्त छे. अने सर्व प्रकारना दुष्कर्मोथी, लित हतुं ते संदिग्ध छे. सपळा पापकर्म थं निवृत्ति अनभवे छे. आ प्रमाणे २ जुओ. इन्डि. एन्टि भा. ९. पृ.१५८ मा प्रकट थए ठो मारो On Mahavir and his Pre lecessors ना१ सुमंगलाला सेनी [पाली टेक्स्ट सेनयटा ] . ११९ मनो निबन्ध, ।
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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