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________________ अंक ४] डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना १७१ र्थ अने प्रामाणिक आलेखन मेळववानी आपणे आशा जेवा ज होवा जोईए. गृहस्थ अने साधुजीवनना नियमोनुं न ज राखवी जोईए. तेओ स्वाभाविक रीते, ते सिद्धा- भिन्नत्व बीजा दिवसोमा रहेतुं हतुं. परंतु आ वर्णन न्तोर्नु आलेखन एवा ज रूपमां करशे के जेथी तेमां दे- जैनोना पोसहव्रतना नियमो साथे पूरेपूरुं मळतुं आवतुं खाई आवता दोषो वधारे मोटा प्रमाणमां बतावी शकाय. नथी. प्रो. भांडारकर, तत्त्वार्थसार-दीपिकाना आधारे जैनो पण आ बाबतमा बौद्धो करतां लेशमात्र उतरे तेम पोसहवतनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे आपे छ; अने आ वर्णन नथी. तेमणे पण बौद्धोना सिद्धान्तोने आ ज प्रमाणे विकृत बीजा तेवा वर्णनो साथे बगबर संगत थाय छे. भांडारकर रूपमां आलेख्या छे. बौद्धोना ए मंतव्यनु के-पाप लखे छ:-'पोसह एटले दरेक पक्षनी अष्टमी अने चतु. ए तेना आचारनारने आशय उपर आधार राखे छे, तेनुं शीना पवित्र दिवसे उपवास करवो अथवा एकाशन जैनाए, आ पुस्तकना पृ० ४१४ उपर, केवु असत्य करवू अथवा एक ज ग्रास खावो. ते दिवसोमा यतिनी निरूपण कर्यु छे ते जोवा जेतुं छे. ए ठेकाणे जैनोए बौ- माफक वैराग्य धारण करी स्नान, लेपन, आभरण, स्त्री धोना एक महान् सिद्धान्तने मिथ्या कल्पित अने मूर्खता- संगमन, सुगन्धी धूप-दीप इत्यादिना त्याग करवो' जो के पूर्ण उदाहरण साथे मेळवी उपहास पात्र बनावी वर्तमान जनानु ए पोसहव्रत-पालन बौद्धो करतां वणुं दीधो छे. सखत छे, ए वात खरी छे; तो पण ते, निगण्ठ-नियमो अंगुत्तर निकायनो एक उल्लेख जेनी थोडीक चर्चा के जेमर्नु वर्णन उपर आपवामां आव्युं छे, तेना करतां आ उपर करवामां आवी छ तमां वळी आगळ चला घणुं शिथिल होय तेम जणाय छे. मारा जाणवा प्रमाणे वतां जगाववामां आव्यु छ के-उपोसथना दिव. जैन गृहस्थ, पोसहमां कपडांनो त्याग करतो नथी. पण सोमां तेओ (निगण्ठो ) श्रावकोने आ प्रमाणे उपदेश बाकीना आभूषणो अने बीजा विलासानो त्याग करे छे. आपे छे के “ भद्र, तमारे सघळां वस्त्रो काटीनोखा तेम ज दीक्षा ग्रहण करती वखते जेम साधुने त्यागना जोईए अने कहेवू जोईए के -हं कोईनो नथी असे सूत्रो बोलवा पडे छ तेम तेने बोलवा पडतां नथी. आ माझं कोई नथी." अहीं विचारवानुं छे के, तेना माता उपरथी एम जणाय छ के-कां तो बौद्धोनुं आ वर्णन -पिता तेने पोतानो पुत्र तरीके माने छे अने ते पण भूल भरेल अगर असत्यमूलक होय अने कां तो तेमने पोताना माता-पिता माने छे. तेनो पत्र अगर जैनोए पोताना नियमोमां काईक शिथिलता दाखला तेनी पत्नी, तेने पिता अगर पतिरूपे माने छे. अने ते करा हाय. पण तेमने पोताना पुत्र अगर पत्नी तरीके माने छे. तेना दीघनिकाय १, २, ३८ (ब्रह्मजाल सूत्र) मां गुलामो अने नोकरो तने पोतानो मालिक या शेठ माने आवता निगण्ठ विषयक उल्लेख उपरनी पोतानी टीकामां छे अने ते पण तेमने तेओ पोताना गुलामो अगर नोकरो एक ठेकाणे बुधोष लख छ के-'निगण्ठो आत्मा वर्णछे, तेम माने छे. आ कारणथी (निगण्ठो) तेमने रहित छ एम माने छ; अने आजीविको आत्माना व(श्रावकोने ) उक्त रीते बालवानुं कही तेमनी पाथी र्णनी अनुसार समस्त मानव जातिना ६ विभागो पाडे असत्य भाषण करावे छे. वळी ए रात्री व्यतीत थया बाद, छे. परंतु मृत्यु पछी पण आत्मानुं अस्तित्व धरावे छ तेओ, ते ते वस्तुआनो उपभोग करे छे जे सके ना अने ते बधा रोगोथी मुक्त ( अरोगो) होय छे. ए बाबतमा माटे) अदत्तादानरूप छ. आथी हुँ तेमने अदत्तादान निगण्ठो अने अजीविको बंने समानमत वाळा छे.' छेवटना लेवाना पण दोषी तरीके मार्नु छ.' शब्दोनो अर्थ गेम तेम हो, परंतु तेनी उपरनुं वर्णन आ वर्णन उपरथी समजाय छे के निर्ग्रन्थ-उपासकना तो, आ पुस्तकना पृ. १७२उपर आपेला जैनोना आत्मउपोस्रथना दिवसोवाळा नियमो साधुजविनना नियमो स्वरूपना वर्णन साथे बराबर मळतुं आवे छे. एक बीजा
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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