________________
१७३
अंक ४]
डॉ हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना वाचकनु ध्यान खेचवा मांगु छुः बौद्धा नातपुत्तने अग्गि- समजावी निःशंक बनी संपूर्ण एकमत थाय छे. बन्ने संप्रवेसन अर्थात अग्निवैश्यायन कहे छे, परंतु जैनोना मतानु- दायो वच्च काईक मतभेद , जोवामां आवे छे, सार ते काश्यप हता; अने पोताना तीर्थंकरो संबंधी परंतु परस्पर द्वेष या बैर बिलकुल जोवातुं नथी. जो के आवी बाबतोमा जैनोर्नु ज कहे विश्वासपात्र मनावु जो- प्राचान संप्रदायना अनुयायि ओने 'पंच महावत प्रतिपादईए. वळी महावीरनो एक मुख्य शिष्य, जे सुधर्मा नामे नार ' महावीरना धर्मना स्वीकार करवो पडयो हतो, ए हतो अने जेने सूत्रोमां महावीरना धर्मना मुख्य उपद- वात खरो छे; तो पण तेओ पोतानी केट लीक जूनी रूढिशक तरीके बतावेलो छ ते पोते अग्निवैश्यायन हतो; अने ओने पण वळगी रह्या हता. खास करीने वस्त्र वापरतेणे जैन धर्मनो प्रसार करवामां मुख्य भाग भजवेलो वाना विषयमा के जे रूढीनो महावीरे त्याग कर्यो हतो, होवाथी बहारना बीजा माणसो शिष्यने गुरु समजी ले- तेम आपणे मानवं जोईर. आ कल्पनानुसार आपणे वानी भूल करी होय अने तेथी करीने शिष्यनुं गोत्र गुरुने श्वेताम्बर अने दिगम्बर संप्रदायरूपी बे फिरकानो उत्पत्तिलगाडी देवामां आव्युं होय, ते घणु संभवित छे. आ नु मूळ कारण पण बतावी शकीए छाए, के जेना संबंधमां रीतनी बौद्धोए करेली बेवडी भुल महावीरनी पूर्व पार्श्व- श्वेताम्बर अने दिगम्बर बने संप्रदायमा भिन्न मिन्न अने नामना तीर्थकरनी तथा महावीरना मुख्य शिष्य सुधर्मा- परस्परविरोधी दंतकथाओ प्रचलित छे.' आ भेद देखी. नी हयातीनी साक्षी आपे छे.
ती रीते ज कांई आकस्मिक थया न हतो; परंतु असपार्श्व ए एक ऐतिहासिक पुरुष हता ते वात तो बधी लनो एक मतभेद [ उदाहरण तरीके जेवो के श्वेताम्बर रीते संभावित लागे छे. केशी' के जे महावीरना सम- मतना केटलाक गच्छोनी वचे अत्यारे ए हयाती धरावे छ यमा पार्श्वना संप्रदायनो एक नेता होय तेम देखाय छ काळे करीने विभागना रूपमा परिणत थयो अने आखरे तेनो तथा अन्य पण तेवा अनुयायीओना जैन सूत्रोमां तेणे एक महान् धर्मभेदन रूप लोधुं. घणे ठेकाणे उल्लेखो थएला छे; अने ते उल्लेखा एवी बौद्ध ग्रन्थोमां मळो आवता उल्लेखो, नातपुत्तनी पूर्वे सरळ रीते थएला छे के जेथी करीने तेनी सत्यासत्यताना पण निर्ग्रन्थोनी हयाती हती, ए नकारना आपणा विचार संबंधमा शंका उठाववाने कारण मळतु नथी. उत्तराध्यय- ने दृढ करे छे. ज्यारे बौद्ध धर्मनो प्रादुर्भाव थयो त्यारे नना २३ मा अध्ययनमा जुना अने नवा संप्रदायनो पर- निबन्थोनो संप्रदाय एक मोटा सम्प्रदायरूपे गणातो होवो स्पर मेळ केवी रीते थई गयो हतो ते बतावनारी; एक जोईए. ए निर्ग्रन्थोमांना केटलाकने बौद्ध पिटको मां, कथा आ विषयमां घणी ज अगत्यनी छे. केशी अन बुद्धना अने तेना शिष्योना विरोधी तरीके अने वळी गौतम के जेओ बंने जैन धर्मना बे संप्रदायोना प्रतिनिधि केटलाकने तेना अनुयायी थएला तरीके वर्णवेला छ के तथा नेता हता, तेओ पोताना शिष्यपरिवार सहित एक जे उपरथी आपणे उपर प्रमाणे अनुमान करी शकीए वखते श्रावस्ती पासेना उद्यानमा भेगा मळे छे, अने छीए. एथी उलट ए ग्रंथोमां कोई पण स्थले एवो उलेख महाव्रतोनी संख्या विषयक तथा सचेलकाचेलक अवस्था के सूचन सरखं पण थएटुं जोवामां नथी आवतुं के विषयक तेमना धार्मिक मतभेदो वधारे- विवेचन कया निर्ग्रन्थोना सम्प्रदाय ए एक नवीन सम्प्रदाय छे. आ सिवाय मात्र सहज समजावीने दूर करवामां आवे छे.
उपरथी आपणे अनुमान करी. शकीए छीए के निर्ग्रन्थो अने त्वराथी मौलिक नीतिविषयक विचारोना संबंधमां बद्धना जन्म पहला धणा लांबा कालथी अस्तित्व धराप्रत्येक पक्ष दृष्टान्तो द्वारा एक बीजाना विचारो समजी -
------- . ? श्वतावर अन दिगंबर सम्प्रदायांनी उत्तात्तना संधमा जर्मन १ राजप्रश्नीमां पावने (?) राजा पएसी साथ संवाद थयो हतो ओरिएन्टल सोसायटीना जर्नलना ३: मां भागमा प्रकट थरलो अने त्यार बाद राजाने तेमे पे तानो धर्मानुयायी बनाव्यो हतो. मारो निबंध जूओ।