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________________ १४६ जैन साहित्यसंशोधक [खंड अन्तर्गत था । बारानगरके प्रमु या राजाका नाम शक्ति या कुन्दकुन्दका जन्म स्थान बारा' बतलानेका प्रयत्न कर शान्ति था । वह सम्यग्दर्शनशुद्ध, व्रती, शीलसम्पन्न, बैठे हैं । पर इससे यह बात बहुत कुछ निश्चित हो जाती दानी, जिनशासनवत्सल, वीर, गुणी, कलाकुशल और है कि मालवेके या कोटा राज्यके इसी बारामें यह ग्रन्थ नरपतिसंपूजित था। निर्मित हुआ है। आचार्य हेमचन्द्रके कोषमें लिखा है--" उत्तरो शान्ति या शक्तिराजा जान पडता है कि कोई विन्ध्यात्पारियात्रः" । अर्थात् विन्ध्याचलके उत्तरमें पारि- मामूली ठाकूर होगा । यद्यपि उसे नरपतिसंपूजित लिखा यात्र है । यह पारियात्र शब्द पर्वतवाची और प्रदेशवा- है, परन्तु साथ ही 'बारानगरस्य प्रभुः ' कहा है । यदि ची भी हैं। विन्ध्याचलकी पर्वतमालाका पश्चिम भाग कर - माग कोई बडा राजा या मांडलिक आदि होता, तो वह जो नर्मदा तटसे शुरू होकर खंभाततक जाता है और सीसा आर किसी प्रदेश या प्रान्तका राजा बतलाया जाता । राजाका या पान्त उत्तर भाग जो अबलीकी पर्वतश्रेणीतक है पारियात्र वंश आदिभी नहीं बतलाया है. जिससे राजपतानेके कहलाता है। अतः पूर्वोक्त बारानगर इसी भूभागके हाल इतिहासोंमे उसका पता लगाया जा सके और उससे अन्तर्गत होना चाहिए | राजपूतानेके कोटा राज्यमें एक । एक पद्मनन्दि आचार्यका निश्चित समय मालूम किया जा बारा नामक कसबा है, जान पडता है कि यही का बारानगर होगा । क्योंकि यह पारियात्र देशकी सीमाके भीतरही आता है । नन्दिसंघकी पट्टावलीके अनुसार ____ पद्मनन्दि नामके अनेक आचार्य और भट्टारक हो बारामें एक भट्टारकोंकी गद्दी रही है और उसमें वि. गये हैं। उनमें पद्मनन्दिपंचविंशतिकाके कर्ता बहुत सं. ( विक्रमराज्याभिषेक ) ११४४ से १२०६ तकके प्रसिद्ध हैं । वे अपने गुरूका नाम 'वीरनन्दि लिखते १२ आचार्योंके नाम दिये हैं । इससे भी जान पडता हैं और प्रज्ञप्तिके कर्ताके गुरु बलनन्दि हैं । इस लिये है कि सम्भवतः वे सब आचार्य पद्मनन्दि या माघनन्दि ये दोनों एक नहीं हो सकते । इसके सिवाय 'पचविंशकी ही शिष्यपरम्परामें हये होंगे और यही बारा-कोटा तिका ' अपेक्षाकृत अर्वाचीन ग्रन्थ है । हमारे अनुजम्बुद्वीप प्रशप्तिके निर्मित होनेका स्थान होगा। मानसे वह १३ वीं शताब्दीसे पहलेका नहीं हो सकता | ज्ञानप्रबोध नामक भाषाग्रन्थमें (पद्यबद्ध ) कुन्दकुदा- उस समय दिगम्बर मुनि 'जिनमन्दिरोमें रहने लगे थे चार्यकी कथा दी है। उसमें कुन्दकुन्दको इसी बारापुर . और यह उपदेश दिया जाने लगा था कि बिम्बाफलके पत्तेके भी बराबर मन्दिर और जोके भी बराबर जिनप्रतिमा या बाराके धनी कुन्दश्रेष्ठी और कुन्दलताका पुत्र बनवानेवालेके पुण्यका वर्णन नहीं किया जा सकता । बतलाया है । पाठकोंसे यह बात अज्ञात न होगी कि कुन्दकुन्दका एक नाम पद्मनन्दि भी है । जान पडता है १ सुना है कि बारामें पद्मनन्दिकी कोई निषिद्याभी है। कि जम्बुद्वीपप्रज्ञप्तिके कर्ता पद्मदन्दिकोही भ्रमवश कुन्द २ यत्पादपङ्कजरोभिरपि प्रमागत्लग्गैः शिरस्यमलबोधककुन्दाचार्य समझकर ज्ञानप्रबोधके कर्ता, कर्नाटकदेशके लावतारः । भव्यात्मनां मवति तत्क्षणमेव मोक्षं स श्रीगुरुर्दिशतु मे मुनिवीरनन्दी॥ १. पूनेकी प्रतीमें सन्ति (शान्ति ) और बम्बईकी प्रतीमें सचि ४ यह ग्रन्थ काशी में छप चुका है। इसमें अनेक विषयोंके २५ (शक्ति) पाठ है। प्रकरण हैं। २. देखो जैनसिद्धान्तमास्कर किरण ४; और इन्डियन अॅन्टि- १. सम्प्रत्यत्र कलौ काले जिनगेहे मुनिस्थितिः । क्वेरी २० वी जिल्द। धर्मस्य दानमित्येषां श्रावका मूलकारणम् ।। ३ कर्नाटक देशके कोण्डकुण्डनामक ग्रामके निवासी होनेके कारण इनका नाम कोण्डकुण्ड हुआ था । कुन्दकुन्द उसीका उपासकाचार प्रकरण । श्रुतिमधुर संस्कृत रूप है। २. बिम्बादलोन्नति यवोन्नतिमेव मक्त्या
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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