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________________ १४० जैन साहित्य संशोधक। ९७८ और ९८४ ईस्वीके अन्तर्गत कालमें इस ३९४ वर्ष ७ मास अनन्तर प्रारम्भ होता है । अर्थात् मूर्तिका निर्माण हुआ होगा। वीरनिर्वाणके १००० वर्ष अनन्तर कल्कि संवत् आरम्भ बाहुबली चरित्रमें एक श्लोक है जो मूर्तिस्थापनका · होता है । अतएव, कल्कि संवत्का आरम्भ ४७२ ठीक ठीक समय बताता है । वह श्लोक इस प्रकार है- ईस्वीसे होता है । इसलिए कल्कि संवत् ६०० कल्क्यब्दे षट्शताख्ये विनुतविभवसंवत्सरे मासि चैत्रे, ( ४७२+६०० ) १०७२ ईस्वी सन् होगा । परन्तु पञ्चम्यां शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे। यह बात इतिहासके विरुद्ध है, क्योंकि राचमल्ल द्वितीयका सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटितभमणे सुप्रशस्तां चकार शासन सन् ९८४ ईस्वीमें समाप्त होता है । इसके श्रीमच्चामुण्डराजो वेलुगुलनगरे गोमटेश-प्रतिष्ठाम् ।।" . अतिरिक्त ज्योतिष गणनासे भी यह ज्ञात होता है कि अर्थात्-श्रीचामुण्डरावने बेलगुल नगरमें कुम्भलग्नमें, कल्कि संवत् ६०० में चैत्र शुक्ल पक्षकी पंचमी तिथि, रविवार शुक्ल पक्ष चैत्र शुक्ल पंचमीके दिन विभवनाम चैत्रके तेईसवें दिन शुक्रवारको पडती है, जो उपरोक्त कल्कि-संवत्सर ६०० के प्रशस्त मृगशिरा नक्षत्रमें, श्लोकसे विरुद्ध है क्योंकि उसके अनुसार उस साल चैत्र गोमटेशकी प्रतिष्ठा की। शुक्ल पंचमीको रविवार था । यदि हम उपरोक्त तिथिको यथार्थ मान लें, क्योंकि अतएव कल्कि संवत् ६०० का अर्थ कल्कि संवत्की सम्भव है ऐसे उत्तम मुहूर्तमें ऐसा बडा कार्य किया छठी शताब्दी लेना चाहिए । विभव संवत्को ८ वां गया हो, तो हमें यह निकालना पडेगा कि ९७८ और मानना चाहिए जिससे इतिहासानुसार ठीक ठीक बैठे । ९८४ ईस्वीके अन्तर्गत किस दिन यह सब योग पडते इसलिए विभवनाम कल्कि संवत् ६०० के अर्थ लेना थे । हममे भलीभांति सावधानीसे ज्योतिषकी रीतियोंके चाहिए कल्कि संवत्की छठी शताब्दीका ८ वां वर्षअनुसार सर्व सम्भाव्य तिथियोंको जांचा है और उसका अर्थात् ५०८ कल्क्यब्द । यदि हम इस तिथिका परिणाम यह निकलता है कि रविवार ता. २ अप्रैल सन् स्वीकार कर ले तो ठीक ९८० ईस्वीको यह सम्वत् ९८० ई० को मृगशिरा नक्षत्र था और पूर्व दिवससे पडता है और श्लोकमें वर्णित सर्व ज्योतिषके योग भी ( चैत्रकी बीसवीं तिथि ) शुक्ल पक्षकी पंचमी लगगई मिल जाते हैं । थी, और रविवारको कुम्भ लग्न भी था । अतएव जिस . अतएव अब हमारे माननेके लिए दो मार्ग हैं । दिन चामुण्डरायने मूर्तिकी प्रतिष्ठा की उसकी हम यही प्रथम; कि हम बाहुबली चरित्रके श्लोकको इतिहासतिथि मान सकते हैं परन्तु उपरोक्त श्लोकमें एक बात विरुद्ध कहकर प्रमाणित न माने, या जैसा हमने किया है जो प्रथम बार देखनेसे इतिहासके विरुद्ध जान पडती है वैसा उसका अर्थ लगावें, जिससे वह शिलालेखकी है । इस श्लोक में यह कहा गया है कि कल्क्यब्द ६०० तिथिसे मिल जाय । और हमारी समझमें तो दूसरा विभवनाम संवत्सरमें गोम्मटेश्वरकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा हुई। मार्ग ग्रहण करनाही सर्वोत्तम है । शक सम्वत् महावीरके निर्वाणके ६०५ वर्ष ५ मास नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती । पश्चात् प्रारम्भ होता है और कल्कि संवत् शक संवत्के अब हम द्रव्यसंग्रहके लेखकके सम्बन्धमें समस्त प्राप्य सामग्री एकत्र करनेका प्रयत्न करेंगे । इस ग्रन्थके ३८ देखो, नेमिचंद्र रचित त्रिलोक सारका निम्न उल्लेख अन्तिम श्लोकसे यह पता लगता है कि इसके रचयिता 'पण छ सबवस पण मासजुई मुनि नेमिचन्द्र थे ।" बाहुबली चरित्रमें यह लिखा है गमिय वाणिवुइदो सगराजा॥' भर्थात् वीरनिर्वाणके अनन्तर ६०५ वर्ष और ५ मास व्यतीत ३९ देखो, द्रव्यसंग्रह (श्लोक ५८)होने पर शकराजा हुआ। (इन्डियन एन्यवरा, भाग १२, 'दव्वसंगाहमिणं मुणिणाहा दोससंच्यचदा सुदपुण्णा । पृ. २१.) सोधयतु तणुसुचधरण णेमिचंदमुणिणा भणियं जं ॥'
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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