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________________ भक ४] दक्षिण भारतमें ९ वीं-१० वीं शताब्दीका जैन धर्म । नोमचन्द्रके शब्दोंको, जिनका समर्थन शिलालेखसे होता विधि की, जिसमें पहिले उसने इतमी सामग्री व्यर्थ खो है, इस प्रश्नके सम्बन्ध प्रमाणित मानना चाहिए। दी थी, और पूर्ण रूपेण उसने मूर्तिके समस्त शरीरको तो फिर इसका क्या कारण है कि बाहुबली चरित्र स्नान कराया । उस समयसे इस स्थानका नाम, उस राजावली कथे आदिग्रन्थों में चामुण्डरायको मूर्तिका केवल चान्दीके पात्रके कारण, जो पद्मावती हाथमें लिए थी, अन्वेषकही लिखा गया है? शायद कारण यह हो कि बेलियगोल पड गया । "30 इन ग्रन्थोंके लेखक मूर्तिको अधिक प्राचीन कहकर __ मूर्ति निर्माणकी तिथि। अधिक पूज्य और पवित्र बनाना चाहते थे । ____ अब हम अनुमानसे उस तिथिका निश्चय करेंगे - गोम्मटरायकी मूर्त्तिके सम्बन्धमें एक और किम्ब । जिसमें चामुण्डरायने गोम्मटेश्वरकी मूर्ति निर्माण कराई । दन्ती है जिसमें इस बातका वर्णन है कि ऐसि मूर्तिको । " हम कह चुके हैं कि चामुण्डराय मारसिंह द्वितीय और स्थापन करनेके कारण चामुण्डरायके गर्वने किस प्रकार - राचमल्ल या राजमल्ल द्वितीयका मन्त्री था । किम्बदन्तीके नीचा देखा | कथा इस प्रकार है: अनुसार राजमल्लके समयमें मूर्ति स्थापित हुई । हम "इस मूर्तिको स्थापित करनेके अनन्तर चामुण्डराय देख चुके हैं कि मारसिंह द्वितीयके शासनकालमें चामुण्डयह सोचकर मारे गर्वके फूला न समाया कि मैंने अप- रायने अनुपम शौर्यकी ख्याति प्राप्त की थी और एक ने ही सामर्थ्यसे, इतने धन और परिश्रमसे इस देवताकी शिलालेखमें, जिसमें उसने अपना वृत्तान्त दिया है, स्थापना करा ली। तदनन्तर जब उसने देवताकी पंचा- वह केवल अपनी जीतोंका वर्णन करता है। उसके मृत स्नान-विधि की, तो इस पदार्थसे भरे अनेक पात्र द्वारा किए हुए किसी धार्मिक कार्यका उनमें वर्णन नहीं चुक गए, परन्तु देवताकी अलौकिक मायासे, पंचामृत है । यदि मारसिंह द्वितीयके समयमें उसने इस विशालतोंदीसे नीचे न जा सका, जिससे उपासकके व्यर्थाभि- मूर्तिका निर्माण कराया होता तो वह इस बातका मानका नाश हो । कारण न जानकर चामुण्डरायको यह अवश्य वर्णन करता । क्योंकि इससे उसका नाम सोचकर अत्यन्त शोक हुआ कि पंचामृतसे समस्त अमर हो गया है। मारसिंह द्वितीयकी मृत्यु सन ९७५ मूर्तिको स्नान करानेकी मेरी इच्छा पूर्ण न हुई । जब ई० में हुई । चामुण्डराय अपने ग्रन्थ चामुण्डराय पुरावह इस अवस्थामें था, देवताकी आज्ञानुसारं पत्रावती णमें अपनी वीरताका सविस्तर वर्णन करता है और नाम्नी अप्सरा एक वृद्धा निर्धन स्त्रीका रूप धारणकर अपनी समस्त उपाधियोंका वर्णन करके उनके प्राप्तिके प्रकट हुई, जिसके हाथमें एक बेलियगोलमें (छोटी कारण भी बताता है; परन्तु गोम्मटेश्वरकी मूर्तिके निर्माचांदीकी कटोरी ) मूर्तिके स्नानके हेतु पंचामृत था । णका तनिकमी उल्लेख नहीं किया है । इस ग्रन्थके उसने चामुण्डरायसे मूर्तिको स्नान करानेका प्रस्ताव अन्तमें, उसका रचना काल शक ९०० (९७८ ईस्वी) प्रकट किया । परन्तु चामुण्डराय यह समझकर, उस दिया है। अतएव ९७८ ईस्वीके अनन्तर और राजअसंभव प्रस्तावपर हंस दिया, कि जिसको मैं नहीं कर मल या राचमल्ल द्वितीयके शासनके अन्तिम वर्षके पूर्व सका उसे यह करने चली है । परन्तु विनोदार्थ उसने गोम्मटेश्वरकी इस मूर्तिका निर्माण हुआ होगा । राज. उसे यह करनेकी आज्ञा देदी । तब दर्शकोंको यह मल्ल द्वितीयने ९८४ ईस्वीतक राज्य किया । इस लिए देखकर बडा आश्चर्य हुआ कि उसने उस चान्दीके छोटे पात्रहीसे समस्त मूर्तिको स्नान करा दिया । तब ३७ एशियाटिक रीसर्च, भाग ९, पृ. २६६ । उपरोक्त वर्णनमें श्रवण बेलगोलके नाम पडनेका बिल्कुल दूसरा कारण बताया चामुण्डरायने अपने अपराध एवं गर्वके लिए शोक गया है। अभी कुछ दिन हुए जैनोंने गोम्मटेश्वरका पंचामृत प्रकाशित करके, बड़े आदरसे, द्वितीय बार स्नानकी स्नान कराया था।
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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