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________________ जैन साहित्य संशोधक। एतदर्थ यह ग्रन्थ भी प्रस्तुत प्रश्नके निर्णयके हेतु रायने निज उद्योगसे इस मूर्तिको बनवाया । इन प्रमाणकोटिमें नहीं परिगणित किया जा सकता । राजा- लेखोंका समर्थन एक पुस्तकसे होता है, जिसका नाम वली-कथे और स्थलपुराणमें, ग्रन्थकर्ताओंने ऐतिहासिक है गोम्मटसार और जिसको आचार्य नेमिचन्दने, जो घटनाओंकी यथार्थताके लिए कोई प्रयत्न नहीं किया चामुण्डरायके समकालीन थे, रचा है । उसमें निम्नहै, क्योंकि उनका विषय दन्तकथाओं एवं जनश्रुतियोंका लिखित वर्णन है। संग्रह था । यह सत्य है कि इन कथाओंमें कहीं कहीं “गोम्मटसंग्रहसूत्रकी जय हो, जिसमें गोम्मटगिरि ऐतिहासिक सामग्री विद्यमान है, परन्तु उनको तबतक स्थित गोम्मटजिन और गोम्मटराज-निर्मित दक्षिणबिना जांचे ऐतिहासिक घटनाएं न मान लेना चाहिए, कुक्कुट-जिनका वर्णन है।" जबतक अन्य अधिक विश्वस्तसूत्रोंके आधारपर उनकी “उस गोम्मटकी जय हो, जिसके द्वारा मूर्तिका यथार्थता सिद्ध न हो जाय । स्थलपुराणकी निर्मूल मुख निर्मित हुआ, जिसको सब सिद्ध और देवताओंने बातोंके उदाहरण स्वरूप यह पंक्ति लिखी जा सकती देखा । "३६ है-" चामुण्डराज, दक्षिण मदूराका राजा, और गोम्मटेश्वरकी मूर्तिके कारण जिस गिरिपर यह स्थित जैन-क्षत्रिय-पाण्डु-वंशोत्पन्न था | "" इससे इस बातका थी उसका नाम गोम्मटगिरि होगया और इस बारेमें पता लगेगा कि किस प्रकार किम्बदन्तियोंमें मन्त्री नेमिचन्द्र यह शब्द प्रयुक्त करते हैं । " चामुण्डराय द्वारा चामुण्डरायको मदूराका राजा वर्णन किया गया है। निर्मित (विणिम्मिय )" । हम कह चुके हैं कि पौदन__ यदि यह सिद्ध करनेके लिए, कि, इस मूर्तिको पुरमें भरत द्वारा स्थापित गोम्मटेश्वरकी मूर्तिका नाम किसने निर्माण कराया, कोई विश्वस्त अथवा समकालीन कुक्कुटेश्वर हो गया, जब उसके चारों ओर सर्प निकल लेख न होता तो इन किम्बदन्तियोंके आधारपर यह आए । चामुण्डराय द्वारा स्थापित मूर्तिका नाम दक्षिण बात संदिग्ध रहती कि चामुण्डरायने स्वयं इस मूर्तिको कुक्कुट-जिन होगया, जिससे उत्तरीय मूर्तिसे वह भिन्न बनवाया । परन्तु हमारे लिए यह सौभाग्यकी बात है जानी जा सके । इस मूर्तिको बनवानेके कारण चामुण्ड, कि यह सिद्ध करनेके लिए लेख विद्यमान है कि, चामु- रायका नाम गोम्मटराय पडगया । ण्डराय हीने न कि और किसीने, गोम्मटेश्वरकी मूर्ति इन प्रमाणेसे इस बातमें कोई सन्देह नहीं रह जाता बनवाई। कि चामुण्डराय ही ने इस मूर्तिको निर्माण कराया । इस सबसे प्रथम, उस मूर्तिके पैरोंवाला शिलालेख है- महान् कार्यके कारण वह स्वयं गोम्मटराय कहलाने जिसका वर्णन पहिले हो चुका है-जिसमें यह साफ लगा । परन्तु यदि उसने केवल मूर्तिका अनुसन्धान ही साफ लिखा है कि चामुण्डरायने इस मूर्तिको निर्मित किया होता तो कदापि यह बात न होती । चामुण्डकिया । द्वितीय, एक अन्य शिलालेखमें, जिसकी तिथि रायके गुरु नेमिचन्द्र मूर्तिस्थापनके समय अवश्य विद्य११८० ई० है, हम ऊपर देख चुके हैं कि चामण्ड- मान होंगे (क्योंकि बाहुबली चरित्रतकमें यह लिखा है कि उस अवसरपर नेमिचन्द्र भी उपस्थित थे) अतएव ३५ केप्टेन मैकेजी द्वारा उद्धत 'स्थलपुराण' का अवतरण (इन्डि. एन्टी. माग २, पृ. १३०) यह कहना भी उचित होगा ३६ “गोम्मटसंगहसुत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो य। कि सेनगणकी पट्टाबिलिमें भी ऐसा ही लिखा हुआ है-“द- गोम्मटरायविणिम्मियदक्षिणकुक्कुडाजिणो जयउ ।। क्षिण मधुरानगर निवासि-क्षत्रियवंश शिरोमणी-दक्षिण तैलंग कर्नाटक देशाधिपति चामुण्डराय प्रतिबोधक-बाहुबील प्रति . जेण विणिम्मिय-पडिमा-वयणं सवहुसिद्धिदेवेहिं ।। बिम्ब गोमट प्रतिष्ठापकाचार्य-श्री अजितसेन भट्टारकाणाम् ।" सबपरमोहिजोगिहिं दिट्टं सो गोम्मटो जयउ ।। (देखो, जैन सिद्धान्तभास्कर, भाग १, सं. १, पृ. ३८.) (गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, श्लोक ९६८-६९)
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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