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________________ जैन भारत ९ वीं - १० वीं शताब्दीका जैन धर्म | अंक ४ ] कि देशीय गणके नेमिचन्द्र ं मुनि, चामुण्डराय और उसकी माताके साथ पौदनपुर गोम्मटेश्वर के दर्शनार्थ गये थे । और नेमिचन्द्रने स्वप्न देखा कि विन्ध्यगिरिपर गोम्मटेश्वरकी एक मूर्ति है, और चामुण्डरायने मूर्त्तिकी प्रतिष्ठा करानेके अनन्तर उसकी नित्य पूजा और त्यौंहारों के हेतु नेमिचन्द्रके चरनोंपर कुछ ग्राम प्रदान किए जिनकी आय ९६००० मुद्रा थी । ४ ४० माइसोरके शिमोगा जिलेके नगर तालुकेमें स्थित पद्मावती के मन्दिरके हातेमें खुदे हुए लगभग सन् १५३० ૪૨ गुरु थे जिसने गोम्मटेश्वरकी मूर्ति निर्माण कराई । अभयचन्द्र रचित गोम्मटसारके भाष्य में लिखा है कि यह ग्रन्थ चामुण्डरायकी इच्छानुसार रचा गया; जिसको जैनियोंके पवित्र ग्रन्थोंमें वर्णित द्रव्योंकी व्याख्याका अध्यन करनेकी अभिलाषा थी । नेमिचन्द्र - रचित त्रिलोकवारकी एक अति प्राचिन सचित्र हस्तलिखित पुस्तकमें एक चित्र है जिसमें चामुण्डराय अनेक सभासदों के साथ नेमिचन्द्र से जैन सिद्धांतोंकी व्याख्या सुन रहे हैं । नेमिचन्द्र ग्रन्थ | ईस्वी के एक शिलालेख के निम्नलिखित लोकसे यह पता नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवतीने इन प्रथोंकी रचना की:लगता है कि चामुण्डराय नेमिचन्द्रके चरणकमलोकी ( १ ) द्रव्यसंग्रह ( २ ) गोम्मटसार ( ३ ) लब्धिसार पूजा करता था ।:― ( ४ ) क्षपणसार, और ( ५ ) त्रिलोकसार । बाहुबली चरित्र लिखा है कि “ नेमिचन्द्र, गोम्मटसार, लब्धिसार, और त्रिलोकसारके रचयिता हैं "*" द्रव्य संग्रहके अन्तिम श्लोक में नेमिचन्द्र ने अपना नाम प्रकट किया है । इसी प्रकार गोम्मटसारके एक श्लोकसे यह ज्ञात " त्रिलोकसार-प्रमुख... • भुवि नेमिचन्द्र । विभाति सैद्धान्तिक सार्वभौमः चामुण्डराजार्श्वित-पादपद्मः || अर्थात् " त्रिलोकसार और अन्य ( ग्रन्थों ) के रचयिता. . नेमिचन्द्र सिद्धान्त सार्वभौम सुशोभित है, उसके चरणकमल चामुण्डराज द्वारा अर्चित हैं ४१ यद्यपि इस लोकका कुछ भाग मिट गया है, तथापि भाव सुस्पष्ट है । ' सिद्धान्त - सार्वभौम सिद्धान्तचक्रवर्ती नामक उपाधिका पर्याय बाची है जो बहुधा मेमिचन्द्रके साथ प्रयुक्त होता है । स्वयं नेमिचन्द्र ने अपने ग्रन्थ गोम्मटसारमें गोम्मटराय या केवल राय की प्रशंसा की है और ऐसा हम देख चुके हैं। कि यह चामुण्डरायका उपनाम है। उन प्रशंसात्मक श्लोकों में नेमिचन्द्र ने लिखा है कि अजितसेन उस चामुण्डराय के t ४० “ मास्वद्देशीगणाग्रे सर रुचिरसिद्धान्तविन्नेमिचन्द्र - • श्रीपादाये सदा षण्णवतिदशशतद्रव्यभूग्रामवर्य्यान् । दवा श्रीगोमटेशोत्सवस्वननित्याच नावे मवाय श्रीमन्चामुण्डराजो निजपुरमथुरां संजगाम क्षितीशः । ( बाहुबलि चरित्र, श्लोक ६१.) ४१ एपि. कर्मा. भाग ८, लेख नं. ४६. ४२ “गोम्मट संगहसुंत्त गोम्मटासंहरुवरि मोम्मटजिणे य । गोम्मटरायविणिम्मियदक्खिणकुक्कुडजिणो जयउ ।। जेण विणिम्मियपडिमावयणं सव्वट्टसिद्धिदेवहिं । सव्वपरमोहिजोगिहिं दिहं सो गोम्मटो जयउ ।। वजयणं जीणभवणं ईसिपमारं सुवण्णकलसं तु । तिहुवणपडिमाणिकं जेण कयं जयउ सो रायो || जेणुभियर्थमुवरि मजक्रव- किरीटग्गकिरणजलधोया । सिद्धाण सुद्धपाया सो राओ गोम्मटो जयउ ।। जहि गुणा विस्संता गणहरदेवादि - इढिपत्ताणं || सो अजियसेणणाहो जस्स गुरु जयउ सो राओ " ४३ सिद्धान्तामृतसागरं स्वमतिमन्थक्ष्माभृदालोड्य मध्ये मेऽभीष्टफल प्रदानपि सदा देशीगणाग्रेसरः । श्रीमद्गोमटलब्धिसारविलसत् त्रैलोक्यसारामरक्ष्माजश्री सुरधेनु चिन्तितमणिन् श्रीमेमिचन्द्रो मुनिः || ( बाहुबलि चरित्र, श्लोक ६३ ) ४४ ' णेमिचंद मुणिणा भणियं जं ' ( द्रव्यसंग्रह, श्लो० ५८ )
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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