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________________ करने वाला मनुष्य या प्राणी भी अपने जीवन को नहीं टिका सकता है, और जिनेश्वर महाराज की आधा रहित देवद्रव्य का बढाना किसका नाम ? क्या मन्दिर में रोकड द्रव्य देना, सोना चांदी देना, मांकमाम देना, क्षेत्र घर वगैरा देना, इसकी किसी भी जगह शास्त्रों में मनाई है ! कोई भी शास्त्र का जानकार ऐसी बात नहीं कह सकता है. क्योंकि उपर दिये हुए शास्त्रों के प्रमाणों से ही सुवर्णाति और प्रासादि देने का निश्चित हुआ है। इससे यह भी सिब हुआ कि अपनी तरफ से ग्रामादि सुवर्ण आदि देकर देवद्रव्य की वृद्धि करनी चाहिए, जिस तरह से गाम आदि देकर देकर वृद्धि होती है उसी तरह से उछामणी याने बोली से ही देवद्रव्य की वृद्धि करनी वे मुनासिब नहीं है. . उछामणी करना वह श्वेताम्बर को ही मान्य है ऐसा नहीं, किन्तु दिगम्बरों को भी मान्य है, अन्यथा गिरनारजी तीर्थ के विवाद में दिगम्बर लोग यह बात कैसे मान्य करते ? कि ज्यादा बोली बोले उसी का तीर्य गिनना, और यह बात तो सुकृतसागर आदि ग्रन्थों में प्रसिद्ध ही है कि छप्पन धडी सोना बोलकर पेथडशाने गिरनारजी वीर्य को श्वेताम्बर बनाया और उस वक्त दिगम्बरों ने मंजूर भी किया, राजा कुमारपाल ने भी सिद्धाचलजी पर इन्द्रमाला की उछामणी की, वाग्भट ने भी उछामणी की, श्री नशेखर सूरिजी महाराज ने उछामणी से मारती आदि करने का कहा, इतना ही नहीं लेकिन श्राद्धविधि में भी * यदा च येन यावता माला परिधापनादि कृतं तदा तावद् देवादि द्रव्यं जातं" याने माला की उछामणी में जिस वक्त बोलने में आया उसी वक्त से वह बोला हुजा द्रव्य देवद्रव्य गिना जावे याने उसमें के कुछ भी अंश दूसरे खाते में ले जावे नहीं, जितनी उछामणी ही हो वह सब देवव्य ही है.
SR No.540004
Book TitleAgam Jyot 1969 Varsh 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1969
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size23 MB
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