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________________ આગમજ વાત महाराजा कुमारपाल और वस्तुपाल मन्त्रीने करोडों रुपया खर्च करके ज्ञान भण्डार बनवाये थे, अभी उनमें से एक भी पुस्तक नहीं मिलता है और इसी तरह से अब भी किया जाता ज्ञानोद्धार आगे के जमाने में नहीं दिखाई देगा तो क्या यह ज्ञानउद्धार अभी नहीं करना ! हरगिज नहीं, तैरने की इच्छा वाले को तैरने का साधन जरूर करने का है. पेश्तर का साधन बिनाश पाता होवे उसकी रक्षा करना जरूरी है और नया साधन खडा करना और बढाना उसकी भी जरूरत है तो इससे पेश्तर के देवद्रव्य का नाश हो गया देखकर देवद्रव्य की वृद्धि से पीछे नहीं हटना चाहिये. एक पुत्र का मरण देखकर दूसरे पुत्रको नहीं बढाना या पोषण नहीं करना यह दुनिया के व्यवहार से भी बाहर है. इससे देवद्रव्य की वृद्धि को उपर लिखा हुआ फल समझकर भव्य जीवों को देवद्रव्य की वृद्धि रक्षा मंजुर होने पर भी कितनेक ऐसा कहते हैं कि अविधि से देवद्रव्य बढाने में भी अनन्त संसार की वृद्धि है। श्रीमान् हरिभद्र सूरिजी ने ही कहा है किजिणवराणारहियं वद्धारंतावि केवि जिणदव्यं । बुड्ढेति भवसमुद्दे मूढा मोहेण अन्नाणी ॥१०१॥ याने जिनेश्वर महाराज की आज्ञा के रहितपने कई अज्ञानी मोह से मुझाये हुए देवद्रव्य को बढ़ाते हुए संसार समुद्र में डूबते हैं तो इससे मालम होता है कि देवद्रव्य विधि से बढाना चाहिये. .. यह कहना सञ्चा है, कोई भी कार्य विधि सिवाय फल नहीं देत्य है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं हैं कि असल वस्तु को छोड देना, क्योंकि दान, शील, तप, व्रत, पञ्चक्खाण, पूजा, प्रभावना, पौषष, प्रतिष्ठा मोर तीर्थयात्रा विगरे सब ही धर्मकृत्य विधि से ही फल देने वाले है, और अविधि से करने में आवे तो डूबानेवाले हैं. लेकिन इससे धर्म कृत्य की उपेक्षा करने वाला तो जरूर ही डूबेगा. अविधि से किया हुआ भोजन भी अजीर्ण करता है, लेकिन सर्वथा भोजन त्याय
SR No.540004
Book TitleAgam Jyot 1969 Varsh 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1969
Total Pages340
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size23 MB
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