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આગમજત
मंदिर में ठहरने की हद्द दिखानेके लिये जो कहा है, वह प्रणिधानकी तीन गाथा के लिये है, और चैत्यपरिवाडीमें तीन श्लोक की स्तुति के लिये है. लेकिन किसी भी स्थानपर चतुर्थ चूलिकास्तुति
का निषेधका लेख नहीं है. ११ प्रश्न-केवली परमेश्वर तो अतीन्द्रिय हैं तो फिर उनको चक्षु लगाने की
क्या जरूरत है ? उत्तर-केवलज्ञानी प्रभु क्या नासिका (घाण) इन्द्रिय वाले होते हैं !
आपको कहनाही पडेगा कि अतीन्द्रिय केवलज्ञानी होनेसे केवलीभगवान को घ्राणेन्द्रिय नहीं हैं, तो फिर क्या भगवानकी मूर्ति बिना नासिका वाली बनाइ जाय वो आपको इष्ट है ? और आप क्या नासिका वाली मूर्ति नहीं मानेगे ? ___ कभी आप कहेंगे कि भावेन्द्रिय की अपेक्षासे केवली महाराज अतीन्द्रिय है, लेकिन द्रव्येन्द्रिये तो उनको वैसी की वैसीही होती है. आपका यह कथन सच्चा है, तो फिर वही न्याय आप चक्षुके विषयमें क्यों नहीं लेते हैं ? सभी प्राणीको चक्षुका रंग बदनके रंग से विपरीत होता है, नासिकादि का रंग तो शरीरके
रंगकाही होता है, इससे चक्षु अलग लगाने की जरूरत पड़ती हैं. :१२ प्रश्न-भावक प्रतिक्रमण (वदिन्तु ) को सूत्र क्यों मानना ? और यदि
वह सूत्र है तो उसके उपर भाष्य चूणि क्यों नहीं ! उत्तर-भाष्यचूर्णि न होने से सूत्र न माना जाय तो उववाई आदि बहुत
सूत्रों की भाष्यचूर्णि नहीं है, तो क्या वे सूत्र नहीं माने जायेंगे ?
श्री अभयदेवसूरिजी पश्चाशकजी में श्रावक प्रतिक्रमण (वंदित्तु) को सूत्र तरीके फरमाते है.
" ननु साधुप्रतिक्रमणाद्भिन्नं श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रमयुक्तं, नियुक्तिभाष्यचूर्णादिभिरतन्त्रितत्वेनानार्थत्वात् , नैवं, आवश्यकादिदशशास्त्री