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________________ पुस्त। ४-थु ८ प्रश्न-पडिक्कमण में देववंदन करना ऐसा कहां लिखा है ! उत्तर-श्रीमहानिशीथसूत्र में फरमाया है कि शाम का पडिकमण देव वंदन बिना किये करे तो प्रायश्चित्त लगता है, और प्रवचनसारोद्धार, चैत्यवंदनबृहद्भाष्य, चैत्यवंदनभाष्य आदिमें अहोरात्रमें सात वक्त चैत्यवंदन करना फरमाया है. वहां पडिकमणमें दोनों वक्त देववंदन करना फरमाया है. ९ प्रश्न-सामायिकमें देवताका कायोत्सर्ग और स्तुति कहने में मिथ्यात्व लगना कहते हैं, तो फिर चौथी थुई क्यों कहना ? उत्तर-ठाणांगसूत्र में सम्यग्दृष्टिदेवों की स्तुति करने का फल जैनधर्म की प्राप्ति सुलभता से होने का लिखा है. " पंचहिं ठाणेहिं जीवा सुलहबोहित्ताए कम्मं पकरेंति, तं०अरहंताणं वण्णं वयमाणे जाव विवकतवबंभचेराणं देवाणं वणं वयमाणे (ठाणांग ३२१). श्री वज्रस्वामीजी, सुभद्रासती, दुर्बलिकापुष्पमित्र आदि सकल संघ इन सब लोगोंने देवताका कायोत्सर्ग किया है, श्रीहरिभद्रसूरीजी ने पंचवस्तु में श्रुतदेवता वगैरहका कायोत्सर्ग पडिक्कमण में करना कहा है. १० प्रश्न-पंचांगीमें कौनसी जगह चौथी थुई करनी कही हैं ? उत्तर-चैत्यवंदनबृहद्भाष्य, चैत्यवंदनकी ललितविरतरा र्ट का, देव वंदनभाष्य, वन्दारुवृत्ति, वन्दित्तवृत्ति आदि में देवताका कायोत्सर्ग और स्तुति करनी कही है. आवश्यकादिक में सामान्यसे देववंदन करना फरमाया है. किसीभी स्थानमें आवश्यकादिसूत्रों में कायोत्सर्ग के बाद जो बोली जाती है वो जो चूलिका स्तुति है वो तीन ही कहना, ऐसा लेख नहीं है.
SR No.540002
Book TitleAgam Jyot 1967 Varsh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size20 MB
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