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________________ આગમત जाव साहू पज्जुवासामित्ति काऊणं, जइ चेइयाई अस्थि तो पढमं वंदइ, साहूणं सगासाओ रयहरणं निसेन्जं वा मग्गइ, अह धरे तो से उग्गाहियं रओहरणं अत्थि, तस्स असति पोत्तस्स अंतेणं, पच्छा इरियावहियाए पडिक्कमइ, पच्छा आलोएत्ता वंदइ आयरियादी अहारायणियाए, पुणोऽवि गुरु वंदित्ता पडिलेहित्ता णिविट्ठो पुच्छइ पढइ वा [आ० चू० ५० ३४१] इसमें साफ फरमाया है कि सामायिक लेकर चैत्यमें चैत्यवंदन करे, पीछे उपाश्रय का प्रमार्जन करे, बाद इरियावहिया करे, ___ इस पाठसे भी और साफ-जाहिर होगया है कि आवश्यकादिवृत्तिमें जो सामायिक के बाद इरियावहि० है वो वंदन, आलोचन आदि के लिये ही है, सामायिक के लिये नहीं. __ पौषध और साधुपने में तो वे लोगभी (अन्यगच्छवाले) पेश्तर ही इरियावहिया करते हैं. ७ प्रश्न-सामायिक तीन बार उचरना या एक बार ? उत्तर-सामायिक व्रत जब नन्दी की विधि साथ उचरे तब तो व्रतका पाठ तीन बार करना लाजिम ही है, परंतु बिना नन्दी-क्रिया से तोन बार उचरना शास्त्रसे खिलाफ है. खरतरगच्छवालों के बनाये हुए शास्त्र के पेश्तरके किसीभी शास्त्रमें श्रावक को तीन बार सामायिक उच्चरने का लेख नहीं है. व्रत का उच्चार तीन बार करना ऐसा जो कहते हैं वे देशावकाशिकादिक क्यों तीन बार नहीं कहते हैं ? ___ जो लोक साधु को महाव्रत तीन बार उचराने का बहाना लेते हैं उन्हों को समझना चाहिये कि वह नन्दीक्रिया साथ है, और वो बहाने लेते हो तो वहांपर पेश्तर इरियावहिया की जाती है,. बाद में सामायिक उचराइ जाती है, वेसा आप क्यों नहीं करते. हो ? जरा विचार करके देखिये.
SR No.540002
Book TitleAgam Jyot 1967 Varsh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size20 MB
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