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આગમત
से कभी नहीं हो सकती। इससे ही धर्म के विषय में ज्यादा मतमतांतर भी हैं और परीक्षा करना मुश्किल भी हैं । स्पर्शादिक से जिस वस्तु की परीक्षा हो जाती है उसमें विवाद का स्थान ही नहीं रहता । जैसे मृदु और कर्कश स्पर्श, मीठा और तीखा रस, सुगंध और दुर्गंध, सुरूप और कुरूप वगैरह में किसी तरह से किसी का भी विवाद होता ही नहीं; लेकिन धर्म ही ऐसी चीज है जो न तो व्यवहार का विषय है और न तो स्पर्शादि से परीक्षा करने के लायक है । इतना होने पर भी धर्म की परीक्षा किसी तरह से नहीं हो सकती है, ऐसा नहीं है । जैसे आत्मा, बुद्धि आदि पदार्थ व्यवहार और स्पर्शादि का विषय नहीं हैं तब भी उन आत्मादिक पदार्थों को अकलमंद आदमी अनुमान से पहिचान सकता है उसी तरह धर्म की परीक्षा भी अकलमंद आदमी अनुमान से पहिचान सकता है उसी तरह धर्म की परीक्षा भी अकलमंद आदमी दिमाग से कर सकता है । ___ व्यापक धर्मको स्थितिः- जगत के सभी अकलमंद आदमियों को इस बात का तो पूरा निश्चय ही है कि किसी को भी सताना, झूठ . बोलना, किसी की चीज को छीन लेना, औरत पर खराब निगाह करना
और सभी तरह से संग्रहशील बनना, ये सब कार्य बुरे माने गये हैं। याने इन सताना आदि कार्यों को रोकने से ही धर्म हो इस बात में कोई भी आदमी उजर नहीं कर सकता । लेकिन समझदार मनुष्य वर्ताव की जितनी कीमत करे उससे ज्यादा कीमत अच्छे विचार की करते हैं ।
इसीसे ही महर्षि फरमाते हैं कि हरेक धार्मिक आदमी को चाहिए कि अपने वर्तन को सुधारने के साथ साथ विचारशीलता को भी उन्नत बनावे । सामान्य रूप से सभी मनुष्य उन्नत विचार की ही चाहना करते हैं, लेकिन कितनेक मनुष्यों को उन्नत विचार किसको कहना उसका भी ख्याल नहीं होता है । और कितनेक आदमी ख्याल होने परभी उन्नत विचार का परिशीलन करने में ही मंद रहते हैं । लेकिन यह बात निश्चित है कि