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पुस्त 3जगतभर की जो जो किमती चीजें गिनी जाती हैं वे सभी परीक्षा की दरकार रखती हैं, क्योंकि विना परीक्षा किए कोई भी इन्सान इन चीजों को नहीं ले सकता । तब धर्म जैसो चीज जो इस जिन्दगी को सुखमय बनाने के साथ आइन्दा जिन्दगी की मनोहरता करने के साथ शाश्वत ज्ञान और आनन्दमय ऐसे अव्याबाव पद को देनेवाली होने से अनमोल है वह परिश्रम और परीक्षा किए बिना कैसे सच्ची तरह से पहिचान सकते और पा सकते हैं ।
सुज्ञ महाशय को इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि जगत में जिस चीज से जो चीज मिल जाती है उस चीज से वह चीज कम किमतवाली ही होती है । इसी तरह खान, पान, शरीर, इन्द्रियाँ, वाचा, विचार, कुटुम्ब, धन, धान्य, वगैरह सभी चीजें धर्म याने पुण्य से ही मिलती हैं। इससे स्पष्ट ही कहना चाहिए कि धर्म यह अगमोल चीज है । इस वास्ते उसकी परीक्षा अवश्य होनी ही चाहिए । ... ख्याल करने की जरूरत है कि तरकारी लेने में गडबड हो जाय तो आधे आने की नुकसानी होवे, कपडा खरीदने में अकल का उपयोग नहीं करे तो दो चार आने का हरजा होवे, चांदी के गहने में दो चार रुपयों का हरजा होवे, सोने के गहने में पचीस पचास का हरजा होबे, हीरा मोती के खरीदने में हजार दो हजार का घाटा होवे लेकिन परीक्षा किये बिना धर्म के लेने में तो इस जिन्दगी और आइन्दा जिन्दगी की बरबादी होने के साथ संसारचक्र में जीव का भटकना ही हो जाय । इससे धर्म की खास परीक्षा करने की जरूरत है। परीक्षा करके ही लिया हुआ धर्म बहुत करके सच्चा मिल सकता है।
धर्म की परीक्षा:- जगत में जिस पदार्थ को अपने देखते हैं उसकी परीक्षा अपन कौरन कर सकते हैं, क्योंकि जगत के बाह्य पदार्थों की परीक्षा उनके स्पर्श, रस, वर्ण' गंध, संस्थान' आकृति वगैरह से हो सकती है, लेकिन यह धर्म ऐसी चीज है कि जिसकी परीक्षा स्पर्श वगैरह