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पुस्त। 3
यह सब कथन जो इन्सान पुनर्जन्म या भवांतरा नहीं माननेवाला है वैसे के ही मुख में शोभा दे सकता है ।
परन्तु जो इन्सान अपने को हिन्दु जाति में ही दाखल करना चाहता हो वह स्वर्ग-मोक्ष को वाच्यार्थ और लक्ष्यार्थ दोनों तरह से मानने में कभी नहीं हिचकायगा।
हिन्दुजाति का मतलब ही यही है कि आत्मा को एक भब से दूसरे भव, दूसरे भव से तीसरे भव, इस तरह से घुमनेवाला ही माने । हिन्ड् धातु घुमने के अर्थ में है, और घुमनेवाला ही यह आत्मा होने से शास्त्रकारोंने आत्मा को हिन्दु माना है और इस तरह से हिन्दु आत्मा को मानने वाले ही हिन्दु गिने गये हैं।
ख्याल रखने की जरूरत है कि जिस मजहब के नेता ने एक ही पुनर्जन्म मान के बार बार पुनर्जन्म रूप भवान्तर नहीं माना उन लोगों ने ही हिन्दु जाति को काफर शब्द से पुकारा है ।
इस स्थान में सर्व धर्म का विचार होने से विशेष विचार न करके 'वास्तविक रीति से स्वर्ग-मोक्ष को देनेवाला धर्म है', यह बात हिन्दु जाति को सभी तरह से मान्य है, ऐसा समज के धर्म के ही विषय में कुछ कहने में आयगा। स्वर्ग-मोक्ष सत् हैं धर्म उसका कारण हैं।
सभी हिन्दुशास्त्र इस विषय में एक मत को धारण करते हैं कि धर्म का नतीजा स्वर्ग और मोक्ष ही है । याने कोई भी हिन्दु स्वर्ग या मोक्ष को असत् पदार्थ नहीं मानता है कि जिससे स्वर्ग और मोक्ष को सिर्फ वाच्यार्थ में रखके इहलौकिक फल को लक्ष्यार्थ की तौर से गिनले ।
सामान्य शास्त्रीय नियम भी आप लोगों के ख्याल में हैं कि वाच्यार्थ का बाध होने से ही वाच्यार्थ को छोड के उससे भिन्न ही लक्ष्यार्थ लेना।