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ANEKANTA - ISSN 0974-8768
अभयकुमार ने हाथी का वजन करने के लिये आयतन सूत्र का आविष्कार कुछ गरीब ब्राह्मणों की रक्षा के लिये किया था।
___ इस प्रकार आधुनिक विज्ञान सत्य व अधूरे मार्ग से है। अपूर्ण सत्य है एवं परिवर्तनशील सिद्धान्त है। वैज्ञानिक भी परम वास्तविकता से बहुत परे हैं। वैज्ञानिक सिद्धान्त पूर्ण सत्य नहीं होने के कारण अनेकों बार परिवर्तित होते रहे हैं। अब विज्ञान सत्य की ओर कदम-कदम बढ़ रहा है।
सर्दी-गर्मी, हवा-नर्मी, धूल-प्रकाश, ध्वनि-ऊर्जा, अंधकार-प्रकाश, खुशबू-बदबू, अनुकूल-प्रतिकूल, श्वांस-प्रतिश्वास, एलर्जेन्स सभी पुद्गल की भिन्न-भिन्न वर्गणायें हैं। ये जैन विज्ञान का महत्त्वपूर्ण चिंतन क्षेत्र बनाती हैं।
हमारे सभी सिद्धान्तों की दिव्याथा पुनः प्रांजल रूप से आलोकित होकर वैज्ञानिक युग में धर्म की भूमिका का महत्त्व बताकर वर्तमान पीढ़ी व भावी पीढ़ी को सत्पथ में स्थित करेगी तथा भविष्य को एक अमूल्य कोष संपूर्णता के साथ धरोहर स्वरूप प्रदान करेगी और इसी प्रकार जैनधर्म की दिव्यध्वनि लोकाकाश व दिग्-दिगन्त में अपना दिव्य धर्म-ध्वज फहराएगी।
जैनधर्म के सिद्धान्त जीवन की प्रयोगशाला में परखे गये हैं, जो कि अकाट्य हैं और आज भी उनकी उपादेयता है। विज्ञान ने मानव को ज्ञान दिया है, यह सत्य है, परन्तु मनुष्य धर्म के अभाव में विवेक शून्य हो गया है और विवेक रहित ज्ञान से अणुबम और उद्जन बम का निर्माण करके उसी ने मानवीय संस्कृति पर कुठाराघात किये। इसका सारा दोष विज्ञान को थोपा गया। ज्ञान के साथ विवेक की अनिवार्यता को भूलने से शक्ति तो बढ़ गई, परन्तु शान्ति नष्ट हो गई। शांति के लिये विज्ञान और धर्म के समन्वय की आवश्यकता है।
अन्त में मैं यही कामना करती हूँ कि हम सब अपने सिद्धान्तों के प्रति नतमस्तक होते हुए आस्थावान् रहें तथा प्रतीक्षा करें उस पल की जब तक आचार्यों द्वारा वर्णित एक-एक सिद्धान्त को मूर्तरूप प्रदान होवे। तब तक निष्ठावान् एवं दृढ़ संकल्प से जिनशासन के सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र को अपने जीवन का अंग बनायें।