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ANEKANTA - ISSN 0974-8768
क्योंकि सूर्य के प्रकाश में पराबैंगनी किरणों से जीवों की उत्पत्ति नहीं होती है।
पानी छानकर पीना- पानी छानकर पीना न केवल वैज्ञानिक, स्वास्थ्य विज्ञान और स्वच्छता, आगम के अनुरूप है, अपितु समूची सृष्टि के प्रति करुणा और मैत्री का संदेश है, क्योंकि वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध कर दिया है कि एक बूंद अनछने जल में 36450 जीव होते हैं, जिनकी रक्षा हेतु जैनागम पानी छानकर पीने की बात कहता है, क्योंकि जैनाचार्यों का उन असंख्यात जीवों के प्रति करुणा का भाव है।
जैन धर्म के सिद्धान्त अत्यन्त व्यावहारिक ही नहीं, अपितु वैज्ञानिक एवं तर्क सम्मत हैं। वाशिंगटन के वर्ल्ड वॉच संस्थान ने सिद्ध किया है कि साफ और सुरक्षित पानी पीने से मानव अधिक समय तक जीते हैं।
जैन धर्म और शरीर विज्ञान- जैन परम्परा में शरीर विज्ञान के अंतर्गत स्थूल शरीर के निर्माण की जो प्रक्रिया बताई गई है, वह प्रक्रिया हमारे जैनाचार्यों ने हजारों वर्ष पहले ही बता दिया था, वही आज Geology, Biotechnology Bit Genetic Engineering #46241 जा रहा है। आधुनिक विज्ञान में जो Genetic Engineering है, वह आगम में प्रतिपादित शरीर पर्याप्ति से संबन्धित है। शरीर पर्याप्ति ही जीन्स और Cromosomes का निर्माण है, जब genes &cromosomes विकसित होते हैं, तभी शरीर विकसित होता है, अर्थात् आगम में प्रतिपादित 6 पर्याप्ति ही आधुनिक genes & cromosomes की मान्यता
इस दृष्टिकोण से युवा पीढ़ी को जैन दर्शन का अध्ययन, अनुसंधान करना चाहिये ताकि हम समाज तक यह बातें पहुंचाने में सफल हो जायेंगे कि जो आज विज्ञान कह रहा है, वह बात जैन दर्शन में पहले ही कही जा चुकी है।
__ आधुनिक विज्ञान की खोज से यह शरीर पुष्ट होता है, जबकि वीतराग विज्ञान से आत्मिक सुख मिलता है। लोक व्यवहार में कहा जाता है- जब शरीर रोगी, बूढ़ा अथवा मरण को प्राप्त होगा, तब कौन काम