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________________ 85 अनेकान्त 72/3, जुलाई-सितम्बर, 2019 निर्मित होते हैं, कुछ स्कंध से अर्थात् परस्पर संयोजन के फलस्वरूप बनते हैं तथा कुछ स्कंध ऐसे भी हैं जो विघटन और संयोजन दोनों प्रक्रियाओं के साथ होने पर निर्मित होते हैं। जैन धर्म और आहार विज्ञान- कहा है- 'आहार शुद्धौ सत्त्व शुद्धौ' यदि हमारा आहार शुद्ध है तो सब कुछ शुद्ध है, क्योंकि आज का विज्ञान भी इसे अच्छी तरह मानता है कि वैक्टीरिया किसी भी वस्तु को कितनी जल्दी नष्ट कर देते हैं। __जैन धर्म में भोजन सम्बन्धी प्रत्येक वस्तु का मर्यादा काल ऋतुओं के अनुसार बताया गया है, जिससे भोजन निर्दोष हो तथा प्रदूषित न होने पावे, ताकि स्वास्थ्य के साथ-साथ साधना भी अच्छे से हो सके। जिस प्रकार दूध को छानने के बाद तुरन्त या 48 मिनिट के अन्दर उबाल लेना चाहिये, क्योंकि इस काल के बाद उसमें असंख्यात जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। आधुनिक विज्ञान भी यही कहता है कि जल, दूध आदि तरल पदार्थों को यदि आधा घण्टे तक 63°C तापमान पर या 3 मिनिट तक 80°C तापमान पर गर्म किया जाए तो बैक्टीरिया दूर हो जाते हैं, जिसे पाश्चुराइजेशन कहते हैं। जैनाचार्यों ने आटे की मर्यादा सर्दी में 7 दिन, गर्मी में 5 दिन, वर्षा में 3 दिन की कही है। रोटी व पकी हुई दाल-चावल की मर्यादा 6 घण्टे, तले हुए पदार्थों की मर्यादा 24 घण्टे की बताई है, जिसे वैज्ञानिकों ने भी स्वास्थ्य की दृष्टि से परीक्षण करके सही माना है। जैनाचार्यों ने श्रावक के लिये 5 उदुम्बर फल तथा मांस, मद्य, मधु के त्याग करने को कहा है। इन वस्तुओं को वैज्ञानिक भी अनुपसेव्य कहते रात्रि भोजन त्याग- जैन धर्म में रात्रि भोजन त्याग की परम्परा अत्यधिक वैज्ञानिक परम्परा है। रात्रि में अथवा कृत्रिम प्रकाश में विषाक्त सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती है, वे सूक्ष्मजीव भोजन को विषाक्त बना देते हैं और रात में किए गये भोजन का परिपाक भी सम्यक् रूपेण नहीं होता है। अतः रात्रि भोजन में अनेक जीवों की विराधना एवं असम्यक् रूपेण पाचन एवं भोजन विषाक्त होने से स्वास्थ्य के लिये भी घातक होता है,
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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