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________________ ANEKANTA - ISSN 0974-8768 कि परमाणु एक मूलभूत कण है, वह रासायनिक तत्त्वों का ऐसा सूक्ष्मतम भाग है, जिसका रासायनिक क्रियाओं द्वारा और अधिक विभाजन नहीं किया जा सकता है। सन् 1897 में जे. जे. थॉमसन ने माना कि परमाणु पदार्थ का मूलभूत कण नहीं है, अपितु electron & proton से मिलकर बना है। बाद में चेडविक ने न्यूट्रॉन की खोज की। उसके बाद रदरफोर्ड, बोर, गामा, फर्मी, पाली, प्लैक आदि वैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु द्रव्य का अंतिम कण नहीं है, अपितु एक विशेष प्रकार की संरचना है। परमाणु जैन दर्शन की दृष्टि में- जैन दर्शन में परमाणु का तात्पर्य पुद्गल के उस लघु अंश से है, जिसे और विभाजित न किया जा सके, अर्थात् जो एक प्रदेशी है। आचार्य अकलंकदेव ने कहा है कि- सभी पुद्गल स्कंध परमाणुओं से निर्मित हैं और परमाणु पुद्गल के सूक्ष्मतम अंश हैं। परमाणु नित्य अविनाशी और सूक्ष्म है। वह दृष्टि द्वारा लक्षित नहीं हो सकता है। परमाणु में कोई एक रस, एक गंध, एक वर्ण और दो स्पर्श (स्निग्ध अथवा रूक्ष, शीत या उष्ण) होते हैं। आधुनिक विज्ञान में अणु तथा परमाणु भिन्न हैं। विज्ञानानुसार पदार्थ का वह सूक्ष्मतम अंश जो दो या दो से अधिक समान परमाणुओं अथवा असमान परमाणुओं के योग से निर्मित होता है तथा जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है और जिसमें पदार्थ के समान्तर गुण विद्यमान हों, अणु कहलाता है। इस परिभाषानुसार विज्ञान द्वारा मान्य अणु एवं जैन दर्शन द्वारा मान्य परमाणु न होकर स्कंध ही है, क्योंकि एक से अधिक अणु या परमाणुओं के समूह को स्कंध कहते हैं। स्कंध उत्पत्ति की प्रक्रिया- स्कंध उत्पत्ति की प्रक्रिया को आचार्य उमास्वामी ने कहा है कि- भेद-संघातेभ्य उत्पद्यन्ते। अर्थात् स्कंध की उत्पत्ति भेद से, संघात से और भेद-संघात द्वारा होती है। आधुनिक विज्ञान भी यही मानता है। यहां भेद का अर्थ fission और संघात का तात्पर्य संयोजन fussion से है तथा भेद-संघात का अर्थ विघटन व संयोजन का साथ-साथ होना है। अतः कुछ स्कंध भेद से
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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