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अनेकान्त 72/3, जुलाई-सितम्बर, 2019 अपने लक्ष्य स्थल पर नहीं पहुंच पाता है, उसी प्रकार धर्म विज्ञान से रहित होने पर मिथ्या परम्परा में जकड़कर पंगुवत् उन्नतशील दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे नहीं बढ़ पाता है एवं स्वलक्ष्य को भी प्राप्त नहीं कर पाता है।
भौतिक विज्ञान ने यान, वाहन, टीवी, रेडियो, कम्प्यूटर, पंखा, कूलर, ए.सी. आदि भौतिक साधनों से जीवों को सुख पहुंचाया है, जिनके माध्यम से मानसिक सुख मिलता है, परन्तु धर्म से शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, इहलोक, परलोकादि सम्बन्धी सुख प्राप्त होता है। Look like on inncent flower, but the serpent under it. अर्थात् धर्म से रहित विज्ञान, सभ्यता, संस्कृति मानव उसी प्रकार ऊपर से सुंदर है, जिस प्रकार फूल से ढका हुआ विषधर सर्प।
__ धर्म से रहित विज्ञान बाह्य से देखने पर मनमोहक पुष्प के समान निर्दोष है, परन्तु अंतरंग में सर्प जैसा है। धर्म सहित जीवन, पवित्र जीवन है एवं धर्म रहित जीवन अभिशप्त जीवन है। जहाँ से विज्ञान की सीमा समाप्त होती है, वहाँ से धर्म प्रारम्भ होता है।
जिस प्रकार जीवन धारण करने के लिये आहार, पानी, वायु की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार आध्यात्मिक जीवन-यापन करने के लिये विज्ञान रूपी आहार, वायुरूपी धर्म की आवश्यकता होती है, क्योंकि बिना आहार के जीव कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकता है, परन्तु वायु के बिना जीव क्षणभर में ही अपने प्राण गंवा देता है। जहाँ पर धर्म है, वहां पर विज्ञान निश्चित है, परन्तु जहां पर विज्ञान है, वहां पर धर्म कथंचित् हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।
जिस प्रकार एक कार के लिये गति, प्रकाश तथा ब्रेक चाहिये, उसी प्रकार उन्नतशील जीवन जीने के लिये विज्ञान तथा धर्म चाहिये। विज्ञान यदि गति है तो धर्म ब्रेक है। जिस प्रकार गति के बिना कार का कोई महत्त्व नहीं है, उसी प्रकार विज्ञान में धर्म के बिना कोई महत्त्व नहीं
जैनधर्म और भौतिक-रसायन विज्ञान :
परमाणु विज्ञान की दृष्टि में- सन् 1803 में डाल्टन ने यह माना