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________________ 82 ANEKANTA - ISSN 0974-8768 प्राप्ति का मार्ग है। धर्मः सर्व सुखाकरो हितकरो, धर्म बुधाश्चिन्वते। धर्मेणैव समाप्यते शिव सुखं, धर्माय तस्मै नमः॥ धर्मान्नास्त्यपरः सुहृद्भव-भृतां, धर्मस्य मूलं दया। धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिनं, हे धर्म! मां पालय॥ धर्म समस्त प्रकार के सुखों को एवं हितों को करने वाला है, धर्म से ही शाश्वतिक सुख प्राप्त होता है। धर्म को छोड़कर दु:खी संसारी जीवों का कोई भी बंधु-बांधव नहीं है। इसलिये हे सुख इच्छुक ज्ञानी जीव! धर्म का संचय करो। धर्म का मूल विश्व-प्रेम तथा प्राणीमात्र पर दया है। मैं अपने धर्म में अपने चित्त का समर्पण करता हूँ। हे सर्व सुख दातार धर्म! मेरा पालन करो। विज्ञान की अन्य शाखायें जैसे वनस्पति शास्त्र, प्राणी शास्त्र, मानव विज्ञान, आहार-विज्ञान, भूगर्भ शास्त्र, रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, गणित शास्त्र, न्यूक्लियर विज्ञान, सूक्ष्मजीव विज्ञान, सामाजिक विज्ञान आदि हैं। इस विज्ञान की विकासगाथा लगभग सिर्फ 300 वर्षों की शिवोधर्मेण सहितः शवश्च रहितो मतः। हीनोविज्ञान दृष्टिभ्यां, पगुर्मूढश्च सम्मतौ॥ अर्थात् धर्म सहित जीव, शिव (मंगल) स्वरूप है। धर्म से रहित जीव शव (अमंगल/अपवित्र) स्वरूप है। विज्ञान रहित जीव पंगु के समान है तथा धर्म से रहित जीव मूढ़ के समान है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा है- Science is blind without religon and religion is lame without sceince. धर्म से रहित विज्ञान अंधा है तथा विज्ञान से रहित धर्म पंगु है। जिस प्रकार अंधा व्यक्ति दृष्टि शक्ति के अभाव में पैर होते हुए भी ठीक प्रकार से गमन नहीं कर सकता है और गमन करते हुए भी अनेक आपत्तियों को मोल लेता है, उसी प्रकार विज्ञान उन्नति करते हुए भी उदात्त भावनाओं से रहित होने के कारण जीव जगत् के लिये अनेक आपत्तियों को मोल लेता है। इस प्रकार पंगु देखते हुए भी, चाहते हुए भी
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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