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अनेकान्त 72/3, जुलाई-सितम्बर, 2019 नहीं हो पाते हैं, क्योंकि मिथ्यात्व का नाश धर्म के माध्यम से ही होता
अतः आधुनिक विज्ञान में से उपादेयभूत वस्तुतत्त्व को जानकर धर्म-दर्शन के विज्ञान को समझना नितान्त आवश्यक है।
विज्ञानं भौतिकं ज्ञानं, दर्शनं तत्त्वनिर्णयः।
धर्म आत्मोन्नते मार्गः उत्तरोत्तरे महान्॥ कनकनंदी __ अर्थात् भौतिक ज्ञान को विज्ञान कहते हैं, तत्त्व निर्णय को दर्शन कहते हैं, जिन मार्ग पर चलने से आत्मिक उन्नति, शांति मिलती है, उसे धर्म कहते हैं। विज्ञान से दर्शन तथा दर्शन से धर्म श्रेष्ठ है। विज्ञान Science- वि= विशेष, ज्ञान = वस्तु स्वरूप को जानना विज्ञान Science = शेष वस्तु के सत्य स्वरूप को विशेष रूप से अर्थात् परीक्षण, निरीक्षण से जानने को विज्ञान कहते हैं।
आज जो वैज्ञानिक अपने शोध एवं बोध से प्राप्त ज्ञान को सत्य मान रहे हैं, कल सत्य के प्रकाश में असत्य साबित हो जाता है, तब सबके सामने अपनी भूल स्वीकार भी करते हैं। यह वैज्ञानिकों का एवं वैज्ञानिक युग का सबसे प्रधान एवं प्रथम सुवर्ण नियम है। विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान इन्द्रिय उपज है, परन्तु धर्म आत्मा से अनिसृत है और परस्पर सूक्ष्म विज्ञान की परिसीमा दैहिक एवं लौकिक है, परन्तु धर्म सर्वक्षेत्र, सर्वकाल, सर्वव्यापी, सार्वभौमिक असीम तत्त्व है।
पं. दौलतराम जी ने कहा है
तीन भुवन में सार, वीतराग विज्ञानता। शिवस्वरूप शिवकार, नमहूँ त्रियोग सम्हारिकें। छहढाला
यहाँ वीतराग विज्ञान का तात्पर्य आत्मा के विज्ञान से है, जबकि आधुनिक विज्ञान (Science) तो जड़ पदार्थों के अध्ययन या ज्ञान का नाम है।
___ धर्म (Religion)- जो सत्य को धारण करे, उसे धर्म कहते हैं। विज्ञान से परीक्षित, दर्शन से निर्णीत उस आध्यात्मिक (पवित्र भावनात्मक) मार्ग को धर्म कहते हैं, जिस पर आचरण करने से जीव को शाश्वतिक, अभौतिक, अतीन्द्रिय, आत्मोत्थ, अपरिमित, निरुपम सुख और शांति की