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________________ ANEKANTA - ISSN 0974-8768 के द्वारा आर्यिका को दीक्षा देने की प्रथा आगम के अनुकूल नहीं है। मेरी विनम्र प्रार्थना है गणिनी/ आर्यिका माताओं से कि वे चरणानुयोग से पुष्ट करें कि आर्यिका के द्वारा आर्यिका को दीक्षा दिया जाना आगम के प्रतिकूल है या अनुकूल। भट्टारक स्वरूप : जैन धर्म के संरक्षण में तात्कालिक दृष्टि से भट्टारकों का महान् योगदान रहा है और आज भी उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। आगम में तो क्षुल्लक/ ऐलक को भी मयूरपिच्छी रखने का उल्लेख नहीं मिलता है। अब भट्टारकों के पास भी मयूरपिच्छी है। इस पर समय-समय पर प्रश्न उठते रहे हैं। उनके पास क्षुल्लक की तरह अविहित मयूरपिच्छी है- यह अलग बात है, किन्तु कोई आचार्य/ उपाध्याय/ साधु परमेष्ठी उन्हें धारण करने के लिए पिच्छी भेजे या प्रदान करे- यह बात तो चिन्तनीय है ही। एकबार श्रवणबेलगोला के भट्टारक चारुकीर्ति जी स्वामी ने स्वयं कहा था कि एक आचार्य परमेष्ठी उन्हें स्वयं पिच्छी प्रदान करते हैं या स्वयं भेजते हैं। क्या यह आगमसम्मत माना जा सकता है? विद्वान् और सन्त इन महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचार करें। भट्टारक पद न रहे- ऐसा मन्तव्य हमारा बिल्कुल भी नहीं है। उनके अच्छे कार्यों के प्रति हमारा सम्मान का भाव है, परन्तु उनके स्वरूप का निर्धारण तो होना ही चाहिए ताकि समाज का उनके प्रति सम्मान का भाव बना रहे। उनके पास क्या उपकरण रहे, उनकी वेशभूषा क्या हो- इसका निर्णय आगम के ज्ञाता भट्टारक स्वयं करें। नैतिक शिक्षा : देश के विभिन्न भागों में नैतिक शिक्षण शिविरों की ग्रीष्मावकाश में आयोजना हुई। नैतिक शिक्षा समिति दिल्ली एवं श्रुत संवर्द्धन संस्थान का इन शिविरों की आयोजना में महनीय अवदान रहा। साधु परमेष्ठियों ने भी अपने-अपने स्तर पर अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार बालक-बालिकाओं एवं श्रावक-श्राविकाओं को शिविरों के माध्यम से शिक्षित किया। वास्तव में इनकी आवश्यकता आज ग्राम-ग्राम, नगर-नगर में है। आशा है आगामी समय में इनमें प्राकृत-संस्कृत के सामान्य
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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