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________________ 71 अनेकान्त 72/3, जुलाई-सितम्बर, 2019 नेता स्वरूपी सर्वज्ञ भगवान् को नमस्कार किया है।'' मुनिसुव्रतनाथ भगवान् की स्तुति करते हुए कहा है- हे भगवान्! चेतन और अचेतन रूप संसार क्षण-क्षण में ध्रौव्य, उत्पाद और व्यय रूप लक्षण से युक्त हैं, इस प्रकार का यह जो वक्तृप्रवर आपका वचन है, वह आपकी सर्वज्ञता का द्योतक जैनदर्शन सम्मत सर्वज्ञ की सिद्धि पूज्य आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने आप्तमीमांसा नामक ग्रन्थ में तथा उनके परवर्ती आचार्यों ने भी इस विषय पर भरपूर चिन्तन कर कुशलता पूर्वक सर्वज्ञ की सिद्धि की है। आप्तमीमांसा में आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने युक्ति दी है कि सूक्ष्मादि अतीन्द्रिय पदार्थ भी अनुमेय होने के कारण किसी के प्रत्यक्ष हैं। इसी प्रकार अन्तरित एवं दूरस्थ पदार्थ भी जिसके प्रत्यक्ष हैं वही सर्वज्ञ है। एक दूसरी युक्ति के द्वारा सर्वज्ञता के प्रतिबाधक अज्ञानादि दोषों और ज्ञानावरणादि आवरणों का किसी आत्मविशेष में अभाव सिद्ध करते हुए कहते हैं कि किसी पुरुष विशेष में ज्ञान के प्रतिबन्धकों का पूर्णतया क्षय हो जाता है, क्योंकि उनकी अन्यत्र न्यूनाधिकता देखी जाती है। जैसे स्वर्ण में बाह्य और अन्तरंग दोनों प्रकार के मैलों का अभाव दष्टिगोचर होता है।16 प्रतिबन्धकों के हट जाने पर ज्ञ स्वभाव आत्मा के लिए कोई ज्ञेय-अज्ञेय नहीं रहता। ज्ञेयों का अज्ञान या तो आत्मा में उन सब ज्ञेयों को जानने की सामर्थ्य न होने पर होता है या ज्ञान के प्रतिबन्धकों के रहने से होता है। चूंकि आत्मा 'ज्ञ' है और तप, संयमादि की आराधना द्वारा प्रतिबन्धकों का अभाव पूर्णतया सम्भव है। ऐसी स्थिति में उस वीतराग महायोगी को कोई कारण नहीं कि अशेष ज्ञेयों का ज्ञान न हो। निष्कर्ष यह है कि आत्मा 'ज्ञ' ज्ञाता है और इसके ज्ञान स्वभाव को ढकने वाले आवरण दूर होते हैं। अतः आवरणों के विच्छिन्न होने पर ज्ञ-स्वभाव आत्मा के लिए फिर क्या शेष रह जाता है? अर्थात् कुछ भी नहीं। अप्राप्यकारी ज्ञान से सकलार्थ विषयक ज्ञान होना अवश्यम्भावी है। इन्द्रियां और मन सकलार्थ परिज्ञान में साधक न होकर बाधक है। वे जहां नहीं हैं और आवरणों का पूर्णतः अभाव है, वहां त्रैकालिक और त्रिलोकवर्ती यावज्ज्ञेयों का साक्षात् ज्ञान होने में कोई बाधा नहीं है। आचार्य विद्यानन्द
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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