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________________ ANEKANTA - ISSN 0974-8768 जीवात्मा अविद्या से मुक्त होकर विद्यारूप शुद्ध सच्चिदानन्द ब्रह्ममय हो जाता है और सर्वज्ञता, आत्मज्ञता में विलीन हो जाती है अथवा उसका अभाव हो जाता है। जैनदर्शन में सर्वज्ञ विचार जैनदर्शन में ज्ञान को आत्मा का स्वरूप अथवा स्वाभाविक गुण माना गया है और उसे स्व-पर प्रकाशक स्वीकार किया गया है। यदि आत्मा का स्वभाव ज्ञत्व न हो तो वेद के द्वारा भी सूक्ष्मादि ज्ञेयों का ज्ञान नहीं हो सकता। आचार्य अकलंकदेव ने लिखा है कि ऐसा कोई भी ज्ञेय नहीं है, जो ज्ञ स्वभाव आत्मा के द्वारा न जाना जाए। किसी विषय में अज्ञता का होना ज्ञानावरण तथा मोहादि दोषों का कार्य है। जब ज्ञान के प्रतिबन्धक ज्ञानावरण तथा मोहादि दोषों का क्षय हो जाता है तो बिना रुकावट के समस्त ज्ञेयों का ज्ञान हुए बिना नहीं रह सकता। इसी को सर्वज्ञता कहा गया है। जैन मनीषियों ने प्रारम्भ से त्रिकाल और त्रिलोकवर्ती अशेष पदार्थों के प्रत्यक्षज्ञान के अर्थ में इस सर्वज्ञता को पर्यवसित माना है। आगम ग्रन्थों एवं तर्कग्रन्थों में हमें सर्वत्र सर्वज्ञता का प्रतिपादन मिलता है। षट्खण्डागम सूत्रों में कहा गया है कि "केवली भगवान समस्त लोकों, समस्त जीवों और अन्य समस्त पदार्थों को सर्वदा एक साथ जानते व देखते हैं।" आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा हैl- आवरणों के अभाव से उद्भूत केवलज्ञान वर्तमान, भूत, भविष्यत्, सूक्ष्म, व्यवहित आदि सब तरह के ज्ञेयों को पूर्ण रूप से युगपत् जानता है। जो त्रिकाल और त्रिलोकवर्ती सम्पूर्ण पदार्थों को नहीं जानता वह अनन्त पर्यायों वाले एक द्रव्य को भी पूर्णतया नहीं जान सकता और जो अनन्त पर्याय वाले एक द्रव्य को नहीं जानता वह समस्त द्रव्यों को कैसे एक साथ जान सकता है? भगवती आराधनाकार आचार्य शिवकोटि स्वामी ने कहा है- वीतराग भगवान् तीनों कालों, अनन्त पर्यायों से सहित, समस्त ज्ञेयों और समस्त लोकों को युगपत् जानते व देखते हैं।' तत्त्वार्थसूत्रकार आचार्य उमास्वामी महाराज ने ग्रंथ के मंगलाचरण में ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां पद के द्वारा विश्व के चराचर पदार्थों के ज्ञाता, सर्वज्ञ को नमस्कार किया है। आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने भी सर्वतत्त्वों के ज्ञाता, माता के समान हितोपदेशी, भव्यजनों को मोक्षमार्ग के
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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