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ANEKANTA - ISSN 0974-8768
सर्वज्ञ की सम्भावना करते तथा युक्तियों द्वारा उसकी स्थापना करते हैं। साथ ही उसके सद्भाव में आगम प्रमाण भी प्रचुर मात्रा में उपस्थित करते हैं। चार्वाक दर्शन में सर्वज्ञ विषयक मान्यता
चार्वाक दर्शन का दृष्टिकोण है कि यद् दृश्यते तदस्ति, यन्न दृश्यते तन्नास्ति। इन्द्रियों से जो दिखे वह है और जो न दिखे वह नहीं है। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चार भूत तत्त्व ही दिखाई देते हैं, अतः वे हैं। पर उनके अतिरिक्त कोई अतीन्द्रिय पदार्थ दृष्टिगोचर नहीं होता, अतः वे नहीं हैं। सर्वज्ञता किसी भी पुरुष में इन्द्रियों द्वारा ज्ञात नहीं है और अज्ञात पदार्थ का स्वीकार उचित नहीं है। चार्वाक प्रत्यक्ष प्रमाण के अलावा अनुमानादि कोई प्रमाण नहीं मानते हैं। अतः इस दर्शन में अतीन्द्रिय सर्वज्ञ की सम्भावना नहीं है। मीमांसक दर्शन का दृष्टिकोण
मीमांसकों का मन्तव्य है कि धर्म, अधर्म, स्वर्ग, देवता, नरक, नारकी आदि अतीन्द्रिय पदार्थ हैं तो अवश्य, पर उनका ज्ञान वेद द्वारा ही संभव है, किसी पुरुष के द्वारा नहीं।' पुरुष रागादि दोषों से युक्त है और रागादि दोष पुरुषमात्र का स्वभाव है तथा वे किसी भी पुरुष से सर्वथा दूर नहीं हो सकते। ऐसी हालत में रागी-द्वेषी अज्ञानी पुरुषों के द्वारा उन धर्मादि अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान सम्भव नहीं है। शबर स्वामी ने लिखा हैचोदना हि भूतं भवन्तं भविष्यन्तं सूक्ष्मं व्यवहितं विप्रकृष्टमित्येवं जातीयकमर्थमवगमयितुमलं नान्यत् किंचनेन्द्रियम्।
इससे विदित है कि मीमांसा दर्शन सूक्ष्मादि अतीन्द्रिय पदार्थों का ज्ञान सर्वज्ञ के द्वारा न मानकर वेद द्वारा स्वीकार करता है। किसी इन्द्रिय के द्वारा उनका ज्ञान असम्भव मानता है। बौद्ध दर्शन में सर्वज्ञता
बौद्ध दर्शन में अविद्या और तृष्णा के क्षय से प्राप्त योगी के परम प्रकर्षजन्य अनुभव पर बल दिया गया है और उसे समस्त पदार्थों का, जिनमें धर्माधर्मादि अतीन्द्रिय पदार्थ भी सम्मिलित हैं, साक्षात्कर्ता कहा गया है। दिङ्नाग आदि बौद्ध चिन्तकों ने सूक्ष्मादि पदार्थों के साक्षात्करण रूप अर्थ में सर्वज्ञता को निहित प्रतिपादन किया है; परन्तु बुद्ध ने स्वयं अपनी