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________________ अनेकान्त 72/3. जुलाई-सितम्बर, 2019 आचार्य श्री विद्यासागर विरचित 'चैतन्य चन्द्रोदय' में सर्वज्ञ विचार -डॉ. बाहुबलि कुमार जैन दार्शनिक चिन्तन करना मानव प्रकृति है। अनादिकाल से संसार में संत्रस्त जीव को दु:खों से छुड़ाकर परमसुख की प्राप्ति कराना ही दर्शन का चरम लक्ष्य है। दुःखों से छूटने के लिए विभिन्न दर्शनों में विविध मार्ग कहे गए हैं, किन्तु सबका उद्देश्य पारमार्थिक सुख की प्राप्ति ही है। अज्ञान की निवृत्ति एवं ज्ञान की प्राप्ति सद्गुरु द्वारा प्रदत्त उपदेश द्वारा सम्भव है; किन्तु उपदेशक अथवा मार्गदर्शक की निर्दोषता एवं आप्तता से ही उसके वचनों में प्रामाणिकता का समावेश होता है। जैसे कोई पापकार्य में मग्न व्यक्ति पुण्यमार्ग के प्रतिपादन करने में अयोग्य होता है उसी प्रकार तत्त्वोपदेश हेतु सर्वदर्शी एवं निर्दोष पुरुष ही समर्थवान हो सकता है। आगम में सम्पूर्ण तत्त्वों के ज्ञाता, अशेष द्रव्यों की समस्त पर्यायों के प्रत्यक्ष द्रष्टा उस पुरुष को 'सर्वज्ञ' संज्ञा दी गई है। उपदेशक के वचनों में आप्तता अनिवार्य है। आचार्य अकलंकदेव ने आप्त का अर्थ किया है- जो जिस विषय में अविसंवादक है, वह उस विषय में आप्त है। आप्तता के लिए तद्विषयक ज्ञान और उस विषय में अविसंवादकता अवश्यम्भावी है। आप्त को वीतरागी तथा पूर्णज्ञानी होना आवश्यक है। वीतरागी होने से राग-द्वेषजन्य असत्यता का अभाव हो जाता है तथा पूर्णज्ञान हो जाने से अज्ञानजन्य असत्यता नहीं रहती है। इस प्रकार आप्त के द्वारा उपदिष्ट वचन असन्दिग्ध एवं वस्तु तत्त्व के यथार्थ प्रतिपादक होते हैं। प्रायः सभी भारतीय दर्शनों में सर्वज्ञ पुरुष की चर्चा विभिन्न रूपों में उपलब्ध होती है। सम्प्रति विविध भारतीय दर्शनों में सर्वज्ञता का विचार किया जाता है। विविध भारतीय दर्शनों में सर्वज्ञ विचार भारतीय दर्शनों में चार्वाक और मीमांसक इन दो दर्शनों को छोड़कर शेष सभी (न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, वेदान्त, बौद्ध और जैन) दर्शन
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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