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________________ अनेकान्त 72/3, जुलाई-सितम्बर, 2019 प्रशासन भी मूकदर्शक बना रहता है। हमारे तीर्थ हमारे हाथों से निकल रहे हैं, इसका एक और बहुत बड़ा कारण है और वह है- हमारे प्राचीन तीर्थों से हमारे संतों का मोह भंग होना। यदि कोई थोड़ा सा नाम वाला संत है वह तुरन्त अपना एक नया तीर्थ बना लेता है। इसका सर्वाधिक नुकसान यह हुआ कि संत अपने द्वारा निर्मित तीर्थ के लिए ही समर्पित नजर आते हैं। वे इस बात से ही संतुष्ट नजर आते हैं कि उनकी प्रेरणा द्वारा निर्माण कराये तीर्थ प्रगति करते रहें और इनका नाम भी होता रहे। इस प्रकार के रवैये के कारण प्राचीन तीर्थों पर संतों का आना-जाना भी कम होता जा रहा है। ऐसे नामी संत प्रायः देखने में कम आते हैं, जो अपना नया तीर्थ न बनाये हों तथा हमारे आस्था और श्रद्धा के प्रतीक प्राचीन तीर्थों पर उद्धार के लिए लोगों को प्रेरित करते हों। ऐसी स्थिति में हमारे प्राचीन तीर्थ उपेक्षित होने लगते हैं और बहुसंख्यक जैनेतरों को उन पर कब्जा करने का अच्छा मौका मिल जाता है। इस प्रकार जैन तीर्थों का अन्य मत के तीर्थों में परिवर्तित हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है। दक्षिण भारत में अनेक प्राचीन जैन मंदिर उपेक्षित पड़े हुये हैं। यदि हमारे संतों व समाज का यही रवैया रहा तो उनका भी अन्य मत के मन्दिरों में परिवर्तित होने में अधिक समय नहीं लगेगा। कई साधुओं में बढ़ते भ्रष्ट आचरण के बारे में लिखने की आवश्यकता नहीं है, इनके बारे में तो समाचार प्रायः आते ही रहते हैं। आज अनेक संत मात्र शिथिलाचारी ही नहीं हैं, वे सभी प्रकार के अनाचार, दुराचार, व्यभिचार में लिप्त हैं और दुःख की बात यह है कि इनके विरुद्ध विद्वानों द्वारा कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया गया है। इस प्रकार सच्चे सन्तों की संख्या में बहुत कमी आई है। वर्तमान में हिन्दुत्व की हवा कुछ ऐसी बह रही है जिसने जैनों को भी बहुत प्रभावित किया है। इससे हिन्दुत्व तो मजबूत हो रहा है, लेकिन जैनत्व और जैनधर्म कमजोर होता जा रहा है। यह स्थिति कुछ-कुछ वैसी ही है जैसी पहले कल्की राजा विष्णु यशोधर्म के समय थी। उस समय उसने भी हिन्दू शक्ति संगठित करके हिन्दू धर्म का तो बड़ा उपकार किया, लेकिन जैनधर्म का बहुत नुकसान किया।
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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