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________________ 59 अनेकान्त 72/3, जुलाई-सितम्बर, 2019 एक के पीछे एक ऐसे चार राजा हुए। सभी अत्यन्त अत्याचारी थे। कल्की नाम का कोई एक राजा न था; बल्कि उपर्युक्त चारों राजा ही अपने अत्याचार के कारण कल्की नाम से प्रसिद्ध हुए। श्री जिनेन्द्र वर्णी जी के इस कथन से निष्कर्ष निकलता है कि यह कोई आवश्यक नहीं कि कल्की एक राजा ही हो, वह कई राजाओं का समूह भी हो सकता है। इसी प्रकार वह एक व्यक्ति या फिर कई व्यक्तियों का समूह भी हो सकता है, जो जैन धर्म को हानि पहुंचाये। भगवान् महावीर को निर्वाण प्राप्त हुये 2543 वर्ष हो चुके हैं। इस प्रकार अब तक दो कल्की और दो उपकल्की तो हो चुके हैं तथा तीसरा उपकल्की वर्तमान युग में होना चाहिए। पहले कल्की के पश्चात् एक और कल्की तथा दो उपकल्की कौन थे, यह कहना तो मुश्किल है। लेकिन समय-समय पर उत्तर तथा दक्षिण भारत में अनेक जैन मंदिर तोड़े गये, कई को हिन्दू मंदिरों में परिवर्तित कर दिया गया, अनेक जैनों को अजैन बना दिया। यह सब इस बात की ओर इशारा तो करते हैं कि जिन्होंने भी ऐसा किया वे निश्चित रूप से कल्की या उपकल्की थे। काल गणना के आधार से वर्तमान युग में भी उपकल्की होना चाहिए। यह कोई आवश्यक नहीं कि वह कोई व्यक्ति विशेष ही हो, कोई विचारधारा भी हो सकती है, किसी एक विचारधारा से जुड़े व्यक्तियों का समूह भी हो सकता है, या फिर कुछ अन्य; लेकिन एक बात तय है कि जब भी कल्की या उपकल्की युग आता है तब जैनधर्म का ह्रास होता है। कुछ विशेष बातें दृष्टिगोचर होती हैं, जैसे- जैन तीर्थो तथा मंदिरों को या तो नष्ट कर देना, या फिर अन्य मती द्वारा उनका अधिग्रहण कर लेना; जैनों का अन्य मत को मानने के लिए विवश होना; जैन साधुओं पर अत्याचार होना, इनका भ्रष्ट हो जाना तथा सच्चे साधुओं की संख्या में कमी आ जाना। आजकल देश में लोकतंत्र है। अतः किसी राजा विशेष या सरकार विशेष का उपकल्की होना संभव प्रतीत नहीं होता है; लेकिन यह भी स्पष्ट नजर आ रहा है कि वर्तमान युग में जैन तीर्थों पर अन्य मती द्वारा योजनाबद्ध कब्जा किया जा रहा है, बहुत से जैन जाने-अनजाने में अन्यमती होते जा रहे हैं, साधओं में शिथिलाचार निरन्तर बढ़ता जा रहा
SR No.538072
Book TitleAnekant 2019 Book 72 Ank 07 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2019
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size2 MB
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