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ANEKANTA - ISSN 0974-8768
जैनधर्म में वर्णित कल्की एवं उपकल्की की अवधारणा : वर्तमान परिप्रेक्ष्य में
-डॉ. अनिल कुमार जैन
अनेक जैन शास्त्रों में कल्की तथा उपकल्कियों का वर्णन मिलता है। भगवान् महावीर के 1000 वर्ष बाद पहला कल्की राजा होता है। इसके पश्चात् प्रत्येक एक हजार वर्ष के बाद एक-एक कल्की होता है। इनके मध्य में प्रत्येक पांच सौ वर्ष बाद एक-एक उपकल्की होता है। इस प्रकार इक्कीस हजार वर्ष के दु:षमा नामक (पंचमकाल) में कुल 21 कल्की एवं 21 उपकल्की होते हैं, जो जैन धर्म को हानि पहुंचाते हैं। तिलोयपण्णत्ती के दूसरे भाग में गाथा सं. 1521 से 1529 तक इसकी विस्तृत चर्चा की है। इसके अनुसार पहला कल्की भगवान् महावीर के निर्वाण के 958 वर्ष बाद हुआ, जिसका नाम चतुर्मुख था। इसका शासन 42 वर्ष तक था। कुछ अन्य शास्त्रों में इस पहले कल्की का नाम मिहिरकुल भी मिलता है। कषायपाहुड के अनुसार मिहिरकुल ने गुप्त वंश का साम्राज्य नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और प्रजा पर बड़े अत्याचार किये। इससे तंग आकर एक हिन्दू सरदार विष्णु यशोधर्म ने बिखरी हुई हिन्दू शक्ति को संगठित करके ई. 528 में मिहिरकुल को परास्त करके भगा दिया; उसने काश्मीर में जाकर शरण ली और वहाँ ई. 540 में उसकी मृत्यु हो गयी।
__न्यायावतार के अनुसार विष्णु यशोधर्म कट्टर वैष्णव था। इसने हिन्दू धर्म का तो बड़ा उपकार किया, किन्तु जैन साधुओं और मंदिरों पर बड़ा अत्याचार किया। इसलिए जैनियों में वह कल्की नाम से प्रसिद्ध हुआ और हिन्दू धर्म में उसे अन्तिम अवतार माना गया। (जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग-2)
श्री जिनेन्द्र वर्णी जी ने अपनी खोज के आधार पर एक बहुत ही रोचक बात कही। इनके अनुसार ई. 431-546 के 115 वर्ष के राज्य में