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ANEKANTA - ISSN 0974-8768 कामशास्त्र के संस्कृत ग्रन्थों में जो उल्लेख है, उसी का अनुसरण देवालयों में मिलता है सभी में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष इन चार परुषार्थों का निरूपण मिलता है। कालिदास ने अपने श्रेष्ठ काव्यों में जो शिष्ट प्रणय का वर्णन किया है, उसका शिल्प में भी यथायोग्य समादर हुआ। कवियों की स्त्री सौन्दर्य की मधुर कल्पनाओं को शिल्पी ने मातृत्व भाव के साथ शिल्प में उतारा व स्वीकारा।
'प्रकृति के क्रमिक विकास' को कायम रखने हेतु मानव जीवन में मैथुन का महत्त्वपूर्ण स्थान है, अर्थात इसे सृजनात्मकता से जोड़ा गया है। श्री गोन्डा ने उत्पादकता के तथ्य को समझाने का प्रयास किया है। इस बात को आनन्द कुमार स्वामी, डी.डी. कोशाम्बी, डी. वी. चट्टोपाध्याय और मोतीचन्द्र आदि विद्वान भी सर्वसम्मति से स्वीकारते हैं।' अग्निपुराण, बृहसंहिता, दीपार्णव आदि शिल्पशास्त्रों में तो देवालयों की बाह्य मण्डोवर में स्त्री-पुरुष के युग्म रूप बनाने के निर्देश हैं और जिनालय भी वास्तु शास्त्रानुसार ही निर्मित हुए हैं।
जिनालयों में जहाँ धर्म में विश्वास प्रदर्शित किया गया है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों को भी स्वीकारा है। इसी सहज स्वीकार्य भाव से यहाँ मिथुन युग्म उत्कीर्ण हुए हैं। इनके उदाहरण आहड़ आदिनाथ मन्दिर परिसर में एक प्रस्तर खण्ड, जिस पर मिथुन युग्म के कुल चार दृश्य अंकित हैं। बीच में तीन अप्सरास्वरूपों का अंकन कर प्रत्येक दृश्य को पृथक् किया गया है। प्रथम दृश्य में स्त्री-पुरुष हाथ पकड़े गले में बाहें डाले प्रेमालाप करते हुए, दूसरे दृश्य में जाते हुए पुरुष को बांह पकड़कर स्त्री आग्रह पूर्वक रोक रही है, तीसरे दृश्य में प्रेमी युगल एक-दूसरे में मग्न हैं। चौथे व अन्तिम दृश्य में युगल गले में बांहें डाल आलिंगन मुद्रा में उत्कीर्ण है। श्री ऋषभदेव बावन जिनालय में भी मिथुन युग्म परम्परा के कई दृश्य उकेरित हैं। यह दृश्य देवकूलिकाओं के बाह्य मण्डोवर में वितान, पाट बिम्बों आदि अनेक स्थानों पर, विशेषकर परिक्रमा से प्रथम, द्वितीय व मूल प्रासाद के ठीक पीछे वाली भद्रदेवकूलिका वितान में देखे जा सकते हैं।