________________
ANEKANTA - ISSN 0974-8768
करवाया। तत्कालीन धनाढ्य वर्ग के दरबार से जुड़े रहने के कारण राजदरबार व वहाँ की मुख्य गतिविधियां महत्त्वपूर्ण विषय के रूप में अंकित हुए, जैसे राजा-रानी मंत्रणा करते हुए, युद्ध के दृश्य इत्यादि। राजा व राजदरबारों से सम्बन्धित विषयांकन होने का दूसरा महत्त्वपूर्ण कारण अधिकांश तीर्थंकरों का राजपरिवारों से जैविक सम्बन्ध होना रहा है।
नागदा जैन मन्दिर संख्या-1 के नरथर में अनेक स्थानों पर युद्ध के सुन्दर दृश्यों का अंकन हुआ है। इनमें कतारबद्ध सैनिक, तो कहीं ढ़ाल व तलवार लेकर पंक्तिबद्ध तेजी से चलते हुए सैनिकों का उत्कीर्णन हुआ है। यहीं आगे हाथी को ले जाते हुए, दंड लेकर पीछे चलते अंगरक्षक, लगाम पकड़े घुड़सवार, घुड़सवारों की लड़ाई व आयुधों से सुसज्जित होकर युद्ध करते हुए सैनिकों का मनमोहक अंकन देखा जा सकता है। श्री ऋषभदेव में भी गर्भगृह के ठीक पीछे भद्रदेवकूलिका के दायें वितान में शस्त्रयुक्त घुड़सवार देखे जा सकते हैं। यहीं एक अन्य दृश्य में ऊँट व घुड़सवार आमने-सामने खड़े हैं। ऊँट पर युगल बैठा है, जिसमें पुरुष के हाथ में धनुष तथा बाण हैं। सभी अंकित विषय तत्कालीन समाज की व्यवस्थाओं, रीति-रीवाजों, युद्धशैली और आयुधों आदि का ज्ञान कराते हैं। संगीत, आमोद-प्रमोद आदि के दृश्य ।
गायन-वादन एवं नृत्य तीनों ही जीवन में आनन्दानुभूति प्रदान करते हैं। ये ईश्वरोपासना, भक्ति के सर्वोच्च माध्यम हैं। भौतिकवाद से लेकर आध्यात्मिक संसार तक संगीत का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिनालयों में संगीत आमोद-प्रमोद से सम्बन्धित अनेकों विषयों को उत्कीर्णन में आरम्भ से ही स्थान मिला है।
मेवाड़ के आहड़ आदिनाथ जिनालय के मण्डोवर के नरथर में इसका अंकन हुआ है। इनमें स्त्री-पुरुषों को बांसुरी, ढोलक, तुरही आदि वाद्यों को बजाते हुए नृत्य में रत, जिनभक्ति करते हुए उत्कीर्ण किया है। नागदा में इस तरह के अनेकानेक सुन्दर उदाहरण मन्दिर संख्या एक के जगती-नरथर पर देखे जा सकते हैं। इसमें नृतक, बांसुरीवादक, मृदंगवादक, नृत्य करती हुई त्रिभंग मुद्रा में नृत्यांगना, ढपली, तुरही बजाते वादक, गायक आदि प्रमुख हैं। राजदरबार में नृत्य मण्डली, राजा-रानी नृत्य का आनन्द लेते